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________________ निर्वाण उपनिषद अगर आदमी से परमात्मा यह कहे कि यू आर फ्री, प्रोवाइडेड यू आर गुड; आप स्वतंत्र हैं, अगर आप अच्छे होना चाहते हैं तो ही, तो स्वतंत्रता दो कौड़ी की हो गई। स्वतंत्रता का अर्थ ही यही होता है कि हम बुरे होने के लिए भी स्वतंत्र हैं। और जब स्वतंत्रता है, तभी दायित्व है। तब फिर जिम्मा मेरा है। अगर मैं बुरा हूं, तो मैं जिम्मेवार हूं। और अगर भला हूं, तो मैं जिम्मेवार हो जाता हूं। जिम्मेवारी मुझ पर पड़ जाती है। फिर भारत यह भी कहता है कि परमात्मा हमसे बाहर नहीं है। वह हमारे भीतर छिपा है। इसलिए हमारी स्वतंत्रता अंततः उसकी ही स्वतंत्रता है। इसे और समझ लेना चाहिए। क्योंकि परमात्मा अगर बाहर बैठा हो हमसे और हमसे कहे कि आई गिव यू फ्रीडम, मैं तुम्हें स्वतंत्रता देता हूं, तो भी वह परतंत्रता हो जाएगी, क्योंकि किसी दूसरे के द्वारा दी गई स्वतंत्रता कभी स्वतंत्रता नहीं हो सकती। क्योंकि वह किसी भी दिन कैंसिल कर सकता है। वह किसी भी दिन कह देगा, अच्छा, बस बंद। अब इरादा बदल दिया। अब स्वतंत्रता नहीं देते हैं। तो हम क्या करेंगे? ___ नहीं, स्वतंत्रता आत्यंतिक है, अल्टीमेट है, क्योंकि देने वाला और लेने वाला दो नहीं हैं। वह हमारे भीतर ही बैठी हुई चेतना परम स्वतंत्र है, क्योंकि वही परमात्मा है। वह जो अंतरस्थ आकाश है, वही परमात्मा है। और परमात्मा को भी अगर बुरे होने की सुविधा न हो, तो परमात्मा की परतंत्रता के अतिरिक्त और क्या घोषणा होगी। इसलिए मन पैदा हो सकता है। वह हमारा पैदा किया हुआ है। वह परमात्मा का पैदा किया हुआ है। एक और बात खयाल में ले लेनी जरूरी है कि जीवन के प्रगाढ़ अनुभव के लिए विपरीत में उतर जाना अनिवार्य होता है। प्रौढ़ता के लिए, मैच्योरिटी के लिए विपरीत में उतर जाना अनिवार्य होता है। जिसने दख नहीं जाना. वह सख कभी जान नहीं पाता। और जिसने अशांति नहीं जानी. वह शांति भी कभी नहीं जान पाता। और जिसने संसार नहीं जाना, वह स्वयं परमात्मा होते हुए भी परमात्मा को नहीं जान पाता। परमात्मा की पहचान के लिए संसार की यात्रा पर जाना अनिवार्य है। अनिवार्य! उस पर कोई बचाव नहीं है। और जो जितना गहरा संसार में उतर जाता है, उतने ही गहन परमात्मा के स्वरूप को अनुभव कर पाता है। उस उतरने का भी प्रयोजन है। _कोई चीज जो हमारे पास सदा से हो, उसका हमें तब तक पता नहीं चलता, जब तक वह खो न जाए। खोने पर ही पता चलता है। मेरे पास कुछ था, इसका अनुभव भी खोने पर पता चलता है। खोना भी पाने की प्रक्रिया का हिस्सा है। खोना भी ठीक से पाने का उपाय है। खोना भी पाने की प्रक्रिया का हिस्सा, अंग, अनिवार्य अंग है। जो हमारे भीतर छिपा है, उसे अगर हमें ठीक-ठीक अनुभव करना हो, तो हमें उसे खोने की यात्रा पर भी जाना पड़ता है। कहते हैं लोग कि जब तक कोई परदेश नहीं जाता, तब तक अपने देश को नहीं पहचान पाता। वे ठीक कहते हैं। और कहते हैं लोग कि जब तक दूसरों से कोई परिचित नहीं होता, तब तक अपने से परिचित नहीं हो पाता। ईवेन द वे टु वनसेल्फ पासेस श्रू द अदर। ज्यां पाल सार्च का बहुत प्रसिद्ध वचन है कि दूसरे को जाने बिना स्वयं को जानने का कोई उपाय नहीं। दूसरे से गुजरना पड़ता है स्वयं की पहचान के लिए। क्यों? V 200
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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