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शांति पाठ का द्वार, विराट सत्य और प्रभु का आसरा
आप अपनी भविष्य की योजना के संबंध में बताएंगे? उसने कहा, नहीं। पूछा कि इस मसले के संबंध में आपका क्या उत्तर है? उसने कहा, मेरा कोई उत्तर नहीं है। पूछा कि आप किस राजनीतिज्ञ विचार से सर्वाधिक प्रभावित हैं? उसने कहा, नहीं, उत्तर नहीं दूंगा । और बातें पूछीं, नहीं के सिवाय उसने कोई उत्तर न दिया । और जब सब जाने लगे, तो उसने कहा, ठहरना, डोंट टेक दिस ऑन रिकार्ड, यह जो कुछ मैंने कहा है, इसको रिकार्ड पर मत लेना। और कहा तो उसने कुछ है ही नहीं । रिकार्ड पर मत लेना ! एंड डोंट रिपोर्ट इट । ह्वाट सो एवर आई हैव सेड, डोंट रिपोर्ट इट । जो भी मैंने कहा है, अखबार में मत निकालना । और रिकार्ड पर नहीं । दिस वाज़ आल अनआफिशियल । यह जो मैंने कहा, वह सब गैर-आधिकारिक ढंग से कहा है। मित्रों की तरह बातचीत की है, कुछ कहा नहीं है। और कहा उसने कुछ था नहीं ।
मरते वक्त किसी ने कूलरिज से पूछा कि तुम इतना कम क्यों बोलते हो? तो उसने कहा कि बोला तब तभी मैं फंसा। और फिर मैंने देखा कि नहीं बोलने से कोई मुसीबत कभी नहीं आती।
एक बहुत बड़े जलसे में निमंत्रित था। नगर की सर्वाधिक, राजधानी की सर्वाधिक सुंदरी और धनी महिला उसके बगल में, पड़ोस में थी । उस महिला ने कहा कि प्रेसिडेंट कूलरिज, मैंने एक शर्त लगाई है कि आज घंटेभर आप यहां रहेंगे तो मैं कम से कम तीन शब्द आपसे बुलवाकर रहूंगी। कूलरिज ने कहा, यू लूज । दो ही शब्द बोले उसने । उसने कहा, तुम हारी। फिर नहीं बोला घंटेभर । फिर बोला ही नहीं । फिर वह सिर्फ हाथ हिलाता रहा।
ऋषि कहता है, मेरी वाणी मेरे मन में स्थिर हो जाए।
पहले वह कहता है, मेरी वाणी मेरे मन में स्थिर हो जाए। कभी आपने सोचा, आप बहुत सी बातें कहते हैं, जो आप कहना ही नहीं चाहते थे। यह बड़ी अजीब बात है । जो आपने कभी नहीं कहनी चाही थीं, वे भी आप कहते हैं, आप खुद ही कहते हैं। और पीछे यह भी कहते सुने जाते हैं कि मैं इन्हें कहना नहीं चाहता था, इनस्पाइट आफ मी, मेरे बावजूद ऐसा हो गया। यह वाणी आपकी है! आप बोलते हैं वाणी से कि कुछ और चलता है!
सौ में निन्यानबे मौकों पर दूसरे लोग आपसे बुलवा लेते हैं, आप बोलते नहीं । पत्नी भलीभांति जानती है कि वह आज घर पति से कौन सा प्रश्न पूछे तो कौन सा उत्तर निकलेगा। पति भी भलीभांति जानता है कि वह क्या कहे कि पत्नी क्या बोलेगी। सब आटोमेटा, यंत्रवत चलते हैं।
हमारे मन-मन का अर्थ है, हमारे मनन की, चिंतन की क्षमता - का भी हमारी वाणी से कोई संबंध नहीं है, वाणी हमारी यांत्रिक हो गई है। हम बोले चले जाते हैं, जैसे यंत्र बोल रहा हो। एक शब्द भी शायद ही आपने बोला हो जो मन से एक हो। कई बार तो ऐसा ही होता है कि मन में ठीक विपरीत चलता होता है और वाणी में ठीक विपरीत होता है। किसी से आप कह रहे होते हैं कि मुझे बहुत प्रेम है आपसे, और भीतर उसी आदमी की जेब काटने का विचार कर रहे हैं या गर्दन काटने का । जेब काटना मैंने कहा कि बहुत अतिशयोक्ति न हो जाए। मन में घृणा चल रही होती है, क्रोध चल रहा होता है और आप प्रेम की बात भी चलाते रहते हैं। आप मित्रता की बातें भी चलाते रहते हैं और भीतर शत्रुता चलती रहती है। तो ऐसा आदमी अपने को कभी न जान पाएगा। ऐसा आदमी दूसरों को धोखा नहीं दे रहा है, अंततः
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