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आनंद और आलोक की अभीप्सा, उन्मनी गति और परमात्म-आलंबन
और जब मन नहीं रह जाता, तो उनका कोई आलंबन नहीं रह जाता। वे किसी चीज का सहारा नहीं लेते, वे किसी चीज के सहारे नहीं जीते, वे किसी चीज को साधन नहीं बनाते। और जब कोई व्यक्ति सब भांति निरालंब हो जाता है, तो उसे परमात्मा का आलंबन मिलता है, उसके पहले नहीं। जब तक हम सोचते हैं, हम ही अपने सहारे खड़े कर लेंगे, तब तक परमात्मा प्रतीक्षा करता है। ठीक भी है। सहारा तभी मिल सकता है हमें, जब हम बिलकुल बेसहारे हो जाएं-टोटली हेल्पलेस-उसके पहले नहीं।
लेकिन मन कहता है, क्या जरूरत है बेसहारा होने की? सहारा हम देते हैं। क्या चाहिए तुम्हें? ज्ञान चाहिए? तो चलो शास्त्र का अध्ययन कर लो, ज्ञान मिल जाएगा। मन कहता है, शास्त्र का अध्ययन कर लो, ज्ञान मिल जाएगा। ____ नहीं मिलेगा। मन शास्त्र से जो इकट्ठा करेगा, वह सिर्फ स्मृति होगी, ज्ञान नहीं; मेमोरी होगी, ज्ञान नहीं। वह आत्म-अनुभव नहीं होगा। वह पराए का अनुभव होगा। मन धोखा दे देगा, कहेगा कि अपना ही अनुभव है। ... मन सब सहारे देने को तैयार है। वह कहता है कि क्या जरूरत है? मैं तो हूं! मैं सब कर दूंगा। मन परमात्मा बनने को तैयार है सदा। वह कहता है कि क्या जरूरत है! हम पूरा करने को तैयार हैं। परमात्मा के लिए प्रार्थना करने जाने की क्या जरूरत है! . एक नाव डूबने के करीब है। सभी यात्री हाथ जोड़कर, घुटने टेककर प्रार्थना कर रहे हैं। सिर्फ मुल्ला नसरुद्दीन शांत बैठा हुआ है। कोई यात्री कह रहा है कि हे प्रभु, बचाओ। मेरा जो मकान है, वह मैं दान कर दंगा। कोई कह रहा है कि बचाओ. अब मैं व्रत-उपवास रखंगा. नियम से जीऊंगा. कोई बराई न करूंगा। कोई कछ कह रहा है. कोई कछ कह रहा है। आखिर में मल्ला नसरुद्दीन जोर से चिल्लाया कि ठहरो, जरूरत से ज्यादा वचन मत दे देना। जमीन दिखाई पड़ रही है। नमाज-प्रार्थना टूट गई। लोग उठ गए, सामान-बिस्तर बांधने लगे। वे वचन, वे प्रतिज्ञाएं भूल गईं।
एक बार मुल्ला खुद ऐसी मुसीबत में पड़ गया था। उस वक्त उसने प्रॉमिस दे दी थी। उसने कहा, उसी अनुभव से मैंने तुमको रोका। एक बार मेरी नाव भी इसी तरह डूबने लगी थी, तो मैं कह फंसा कि अगर मैं बच जाऊंगा तो अपना मकान बेच दूंगा और बेचकर सारा धन गरीबों को बांट दूंगा। बड़ा मकान था, दस लाख उसके दाम थे। बच गया। मुल्ला ने कहा, कहने के बाद तो मैं सोचने लगा कि अब न ही बचूं, तो अच्छा। लेकिन बच गया-दुर्भाग्य। झंझट सिर आ गई। मकान बेचना पड़ा और धन गरीबों में बांटना पड़ा।
लेकिन मुल्ला ने तरकीब की। मकान जब उसने नीलाम किया और सारा गांव इकट्ठा हुआ, तो उसने मकान के साथ एक छोटी सी बिल्ली भी बांध दी। और उसने कहा कि दोनों साथ बिकेंगे। मकान का दाम तो एक रुपया है, बिल्ली का दाम दस लाख रुपया है। कई लोगों ने कहा, हम तो मकान खरीदने आए हैं। मुल्ला ने कहा, हम को दोनों साथ ही बेचने हैं। फिर लोगों ने देखा कि कोई हर्जा तो है नहीं, दस लाख में बिल्ली खरीद लो, एक रुपए में मकान मिल रहा है। मकान के दाम इतने थे ही। मुल्ला ने दस लाख में बिल्ली बेच दी, एक रुपए में मकान। एक रुपया गरीबों में बांट दिया।
उसने कहा, एक दफे मैं भी फंस गया था, तो बड़ी झंझट हुई थी। जरूरत से ज्यादा वचन मत दे
1937