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________________ आनंद और आलोक की अभीप्सा, उन्मनी गति और परमात्म-आलंबन जिंदगी लंबी है। तब फिर मैं हैरान होता कि जब एक चोर नहीं थकता, साधारण धन की तलाश, इतनी आशा से, इतना अथक, तो मैं परम धन को खोजने निकला हूं और इतनी जल्दी! तो जिस दिन मुझे परमात्मा की प्रतीति हुई, मैंने परमात्मा को पहले धन्यवाद नहीं दिया, पहले उस चोर को आंख बंद करके नमस्कार किया कि तुझे मिला हो या न मिला हो, बाकी तू मेरा गुरु है। इसलिए दुविधा होती है। अथक-थकते नहीं वे, वे निरंतर उस प्रकाश की खोज में लगे रहते हैं। और अ-मन में वे गति करते हैं-उन्मनी गतिः। यह बड़ा अदभुत सूत्र है। यह सूत्र वैसा ही है जैसा कि आइंस्टीन ने एनर्जी का फार्मूला खोजा। यह सूत्र उतना ही कीमती है, उससे भी ज्यादा। क्योंकि आइंस्टीन के बिना दुनिया में कुछ बड़ा फर्कन पड़ेगा। अगर एनर्जी का फार्मूला न हो, तो भी आदमी हो सकता है। मजे से था। एनर्जी के फार्मूले के बाद ही दिक्कत शुरू हुई है। हिरोशिमा नहीं होता, अगर एनर्जी का फार्मूला नहीं होता। नागासाकी नहीं बनता। लेकिन, अ-मन में ही वे गति करते हैं-उन्मनी गतिः। एक ही उनकी गति है, उस दिशा में, जहां मन नहीं। एक ही उनकी यात्रा है, उस तरफ जहां मन नहीं। वे मन को छोड़कर, छोड़कर, छोड़कर बढ़ते चले जाते हैं। एक दिन आता है कि वे मन से बिलकुल . नग्न हो जाते हैं। मन गिर जाता है। हम भी गति करते हैं, पर मन में, और-और मन के लिए। हम जो भी करते हैं, वह मन का पोषण है। मन को हम बढ़ाते हैं, मजबूत करते हैं। हमारे अनुभव, हमारा ज्ञान, हमारा संग्रह, सब हमारे मन को मजबूत और शक्तिशाली करने के लिए है। बूढ़ा देखें, बूढ़ा आदमी कहता है, मुझे सत्तर साल का अनुभव है। मतलब? उनके पास सत्तर साल पुराना मजबूत मन है। और जैसे शराब पुरानी अच्छी होती है, लोग सोचते हैं, पुराना मन भी अच्छा होता है। वैसे शराब और मन में कुछ तादात्म्य है, एकरसता है। जैसे शराब और नशीली हो जाती है, वैसे ही मन जितना पुराना होता है, उतना नशीला हो जाता है। चेतना नहीं बदलती, चेतना तो वही बनी रहती है। मन की पर्त चारों तरफ घिर जाती है। मांग वही बनी रहती है, वासना वही बनी रहती है। सुना है मैंने कि एक रात मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी ने कहा कि चालीस साल हो गए विवाह हुए। जब शुरू-शुरू में विवाह हुआ था, तो तुम मुझे इतना प्रेम करते थे कि कभी मेरी अंगुलियां काट लेते थे, कभी मेरे ओंठों पर घाव हो जाता था। लेकिन अब तुम वैसा प्रेम नहीं करते। और कल मेरा जन्म-दिन है, तो आज तो कुछ वैसा प्रेम करो। मुल्ला ने कहा, सो भी जा। अब रात खराब मत करवा। तो पत्नी नाराज हो गई। उसने कहा, मेरा कल जन्म-दिन है! मुल्ला ने कहा, बाहर बहुत सर्दी है, उठना ठीक नहीं। पत्नी ने कहा, उठने की जरूरत क्या है ! मैं यहां पास ही हूं। एक बार तो तुम मेरी अंगुलियों को फिर वैसा काटो, जैसा चालीस साल पहले प्रेम में तुमने काटा था। मुल्ला ने कहा, ठीक, नहीं मानती। तो मुल्ला बिस्तर से उठा। पत्नी ने कहा, कहां जाते हो? उसने कहा, बाथरूम से दांत तो ले आऊं। ____ उम्र ढल जाती, वासनाएं वही चली जातीं। दांत गिर जाते, काटने का मन, कटवाने का मन नहीं गिरता। शरीर सूख जाता, वासना हरी ही बनी रहती है। 189 7
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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