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________________ निर्वाण उपनिषद आनंद में, मस्ती में डूबा रहेगा। एक ऐसी मस्ती में, जो बाहर से नहीं आती, जिसके स्रोत भीतर हैं। उस स्वभाव को कहा है सच्चिदानंद।। उपनिषद का यह ऋषि कहता है, वे आनंद-रूप भिक्षा का ही भोजन करते हैं। आनंद भिक्षाशी। बस, भोजन उनका आनंद ही है। एक ही चीज मांगते हैं भिक्षा में, आनंद, और कुछ भी नहीं मांगते हैं। एक ही मांग है, एक ही अभीप्सा है-आनंद। और एक ही भोजन है, एक ही आहार है-आनंद। ___ इसे दो तरह से खयाल में ले लेना जरूरी है। हम भी मांगते हैं, लेकिन हम आनंद कभी नहीं मांगते। हम वे वस्तुएं मांगते हैं जिनसे आनंद मिल सके। इसमें फर्क है। हम मांगते हैं वे वस्तुएं, जिनसे आनंद मिल सके, जिनसे हमें खयाल है, आनंद मिलेगा। सीधा आनंद हम कभी नहीं मांगते। इसलिए कुछ विचारक हुए हैं, जिनका कहना है कि यह बात ही गलत है कि आदमी आनंद चाहता है। जैसे पश्चिम में डेविड ह्यूम, वह कहता है कि नहीं, कोई आदमी आनंद नहीं चाहता। मैंने आदमी ही नहीं देखा, जो आनंद चाहता हो। कोई आदमी कार चाहता है, कोई आदमी बंगला चाहता है, कोई आदमी पत्नी चाहता है, कोई आदमी बेटा चाहता है, कोई आदमी स्वास्थ्य चाहता है, आनंद तो मैंने किसी आदमी को चाहते नहीं देखा। ____वह ठीक कहता है। क्योंकि उपनिषद के ऋषि से मिलना तो बहुत मुश्किल है, हम ही मिल जाते हैं। हम ही मिल जाते हैं सब तरफ। तो ह्यूम ठीक कहता है। जिससे भी पूछता है, कोई कहता है, जमीन चाहिए; कोई कहता है, धन चाहिए; कोई कहता है, पद चाहिए; आनंद तो कोई भी नहीं चाहता है। कोई मिलता नहीं जो कहता है आनंद चाहिए। पर क्यों? कोई कार क्यों चाहता है? मकान क्यों चाहता है? धन क्यों चाहता है? पद क्यों चाहता है? क्या कारण है? __खयाल है उसका कि इसको चाहने से आनंद मिलेगा। कार तो मिल जाती है, आनंद नहीं मिलता। मकान मिल जाता है, आनंद नहीं मिलता। धन मिल जाता है, आनंद नहीं मिलता। साधन तो मिल जाते हैं, जो हमने सोचा था साध्य, वह नहीं मिलता। असल में आनंद का कोई भी साधन नहीं है। इसे थोड़ा समझ लें। ___ आनंद का कोई भी साधन नहीं है। क्योंकि साधन उसके लिए होते हैं, जो हमसे दूर हो। अगर मुझे उस पहाड़ की चोटी पर जाना है, तो साधन की जरूरत पड़ेगी ही। चढ़ने के लिए, जाने के लिए, पहुंचने के लिए मार्ग चाहिए, विधि चाहिए, कोई बताने वाला चाहिए, कोई गाड़ी चाहिए, घोड़ा चाहिए, पैर चाहिए-कोई साधन चाहिए पड़ेंगे उस पार तक। लेकिन मुझे अपने ही भीतर जाना है, तो कोई साधन नहीं चाहिए पड़ेंगे। अगर पराए के पास पहुंचना है, पर के पास पहुंचना है, तो बीच में सेतु चाहिए। लेकिन अगर अपने ही पास पहुंचना है, तो किसी सेतु की कोई जरूरत नहीं है। अगर दूर जाना है, तो चलना पड़ेगा; और अगर अपने ही पास आना है, तो चलने की कोई भी जरूरत नहीं। चले कि भटक जाएंगे। चले कि दूर निकल जाएंगे। जो अपने को खोजने के लिए चलेगा, वह दूर निकल जाएगा, पास नहीं आएगा। ___ आनंद सीधा ही चाहा जा सकता है, उसका कोई साधन नहीं है। क्योंकि वह हमारा स्वभाव है। हमें मिला ही हुआ है-आलरेडी गिवेन। जो मिला ही हुआ है उसे सिर्फ पहचानना पड़ता है, उसे पाना V 180
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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