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शांति पाठ का द्वार, विराट सत्य और प्रभु का आसरा ।
बिलकुल ठीक। राइट, परफेक्टली राइट।
तब तो वकील और मुश्किल में पड़े। मुंशी ने पास सरककर नसरुद्दीन के कान में कहा कि शायद मुल्ला आपको पता नहीं। यह आप क्या कर रहे हैं? अगर दोनों ही बिलकुल ठीक हैं, तो फिर ठीक कौन! नसरुद्दीन ने मुंशी से कहा, राइट, परफेक्टली राइट। तुम भी ठीक, बिलकुल ठीक। .
नसरुद्दीन उठ गया। उसने कहा कि अदालत अपने काम की नहीं, क्योंकि हम कोई ऐसी बात न कहेंगे जिसका कोई विरोध कर सके। हम कोई ऐसी बात ही न कहेंगे जिसका कोई विरोध कर सके। अदालत अपने काम की नहीं। ___ आस्तिक इतना भी नहीं कहेगा कि नास्तिक गलत। आस्तिक यह तो कहेगा ही नहीं कि ईश्वर है
और मैं सही, क्योंकि यह गलत कहे जाने के लिए निमंत्रण है। और जितने जोर से लोग ईश्वर को सिद्ध करने की कोशिश करते हैं, उतने ही जोर से ईश्वर को असिद्ध करने की कोशिश की जाती है।
ओम अर्थहीन है। यहां कुछ कहा नहीं गया है। ओम का अर्थ ईश्वर भी नहीं है। इस ओम में कोई अर्थ ही नहीं है। यह उसके लिए प्रतीक शब्द है जिसको कहा ही नहीं जा सकता। क्योंकि जिसको भी हम कहें, उसे बांटना पड़ता है टुकड़ों में। लेकिन कुछ है अस्तित्व, जो बंटता नहीं, जो अनबंटा है, अनडिवाइडेड। वह जो अनडिवाइडेड एक्झिस्टेंस है, वह जो अस्तित्व है अनबंटा, एक वही है। उसके लिए ही कहा है ओम। इससे ही शुरू होती है प्रार्थना ऋषि की। ईश्वर से भी नहीं की जा रही है यह प्रार्थना। यह तो अस्तित्व से की जा रही है।
ध्यान रहे, जब आप ईश्वर से प्रार्थना करते हैं, तब आप बड़े फर्क करते हैं। - एक सज्जन ने अभी-अभी मुझे पत्र लिखा है। वह पत्र बहुत मजेदार है। उन्होंने मुझे लिखा कि आप में जो-जो ईश्वरीय अंश है, उसको मैं नमस्कार करता हूँ। उन्होंने सोचा कि कहीं पूरे आदमी को नमस्कार करें और उसमें कहीं कोई गैर-ईश्वरीय अंश हो तो अपनी नमस्कार...!
लेकिन ऋषि जब कहता है ओम, तो सामने पड़ा हुआ पत्थर भी ओम का हिस्सा है। आकाश में फैले हुए तारे भी ओम के हिस्से हैं। ओम शब्द सर्वग्रासी है, सभी को अपने में लिए हुए है। तो ये प्रणाम में कोई च्वाइस नहीं है, ओम की तरफ जो निवेदन है, इसमें कोई चुनाव नहीं है कि किसे। समस्त अस्तित्व को, जो भी है, उस सबको। ____ और शांति पाठ भी अगर चुनाव करता हो, तो अशांति पाठ बन जाएगा। लेकिन हम इतना ही चुनाव नहीं करते कि जितने ईश्वर अंश हों, उसको। हम तो और भी चुनाव करते हैं। हम कहते हैं, कौन सा ईश्वर? हिंदुओं का? फिर भी मैंने सोचा कि जिस आदमी ने पत्र लिखा है, काफी व्यापक हृदय वाला होगा। उसने यह तो नहीं लिखा कि आपके भीतर जितना हिंदू ईश्वरीय अंश है या जितना मुसलमानी ईश्वरीय अंश है! फिर भी काफी व्यापक! हम तो उसमें भी चुनाव करते हैं। धीरे-धीरे हमारे हाथ में जो बचता है वह हम ही हैं, और कुछ नहीं है।
सुना है मैंने कि एक आदमी का कुत्ता मर गया। उसे बहुत प्रेम था उससे। आदमी आदमी के बीच तो प्रेम बहुत मुश्किल हो गया है, इसलिए हमें कहीं और रास्ते खोजने पड़ते हैं। बड़ा आदमी था। उसने सोचा कि इस कुत्ते को ठीक मनुष्य जैसा सम्मान मिलना चाहिए। हालांकि उसे खयाल ही न रहा कि
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