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________________ निर्वाण उपनिषद इसलिए ऋषि शुरू करता है शांति पाठ से। शांति पाठ के शब्द सोचने जैसे हैं, सोचने जैसे इसीलिए ताकि किए जा सकें। ___ ऋषि कहता है, ओम। ओम प्रतीक है उस सब का, जिसे कहा नहीं जा सकता। ओम शब्द में कोई भी अर्थ नहीं है। यह मीनिंगलेस है। इसमें कोई भी अर्थ नहीं है। और अगर कोई आपको अर्थ बताता हो, तो उससे कहना कि अनर्थ मत करो। ओम में कोई भी अर्थ नहीं है। वह मात्र ध्वनि है। ध्यान रहे, जहां भी अर्थ होता है, वहां सीमा आ जाती है। अर्थ का अर्थ ही होता है सीमा। जब भी अर्थ होता है, तो उससे विपरीत भी हो सकता है। सभी शब्दों के विपरीत शब्द हो सकते हैं। ओम के विपरीत शब्द बताइएगा? जीवन है तो मृत्यु है, अंधेरा है तो प्रकाश है, अद्वैत है तो द्वैत है, और मोक्ष है तो संसार है। लेकिन ओम के विपरीत शब्द कभी सुना? अगर अर्थ हो तो विपरीत शब्द निर्मित हो जाएगा। लेकिन ओम में कोई अर्थ ही नहीं। यही उसकी महत्ता है। अजीब लगेगा, क्योंकि हमारा मन होता है, खूब-खूब अर्थ बताया जाए। ओम में तो जरा भी अर्थ नहीं है। जस्ट ए साउंड, सिर्फ ध्वनि। लेकिन बड़ी अर्थपूर्ण। अर्थपूर्ण, अर्थ बिलकुल नहीं। अर्थपूर्ण, सिग्नीफिकेंट। ___ओम प्रतीक है सिर्फ उस सब का, जो नहीं कहा जा सकता। हम सब कुछ कह सकते हैं, सिर्फ परमात्मा को नहीं कह सकते। और जब भी हम कहते हैं, तभी कठिनाई शुरू हो जाती है। अगर आस्तिकों ने ईश्वर न कहा होता, तो इस जमीन पर नास्तिक पैदा न होते। आपको पता है, नास्तिक आस्तिक के पहले कभी पैदा नहीं हो सकता। अगर आस्तिक न हो तो नास्तिक पैदा नहीं हो सकता। क्योंकि नास्तिक तो सिर्फ एक रिएक्शन है, सिर्फ एक प्रतिक्रिया है। सिर्फ आस्तिक का विरोध है। तो अगर दुनिया से नास्तिक मिटाने हों तो आस्तिक को कुछ बदलाहट स्वयं में करनी पड़ेगी, नहीं तो नास्तिक नहीं मिट सकते। असल में सच्चा आस्तिक, आस्तिक होने का दावा भी नहीं करता, क्योंकि उस दावे से नास्तिक पैदा होते हैं। बुद्ध ऐसे ही आस्तिक हैं जो आस्तिक होने का दावा नहीं करते। महावीर ऐसे ही आस्तिक हैं जो आस्तिक होने का दावा नहीं करते। जो परम आस्तिक है वह इतना भी न कहेगा कि ईश्वर है, क्योंकि इतना कहने से किसी को भी हम मौका देते हैं कि वह कह सके कि ईश्वर नहीं है। फिर जिम्मेवारी किसकी है? जैसे ही हम किसी चीज को कहते हैं, है, तो हम नहीं को निमंत्रण देते हैं। परम आस्तिक तो, अगर कोई कहेगा, ईश्वर नहीं है, तो उसमें भी हां भर देगा। उसमें भी विवाद खड़ा नहीं करेगा। सना है मैंने कि मुल्ला नसरुद्दीन को जीवन के आखिरी दिनों में वृद्ध और अनुभवी जानकर गांव के लोगों ने न्यायाधीश बना दिया, गांव का काजी बना दिया। पहले ही दिन, जिसने अपराध किया था, नसरुद्दीन ने उससे सवाल पूछा। जो भी उसने कहा, नसरुद्दीन ने शांति से सुना। फिर बहुत आनंदित होकर कहा, राइट, परफेक्टली राइट। ठीक, बिलकुल ठीक। अदालत का मुंशी थोड़ा घबड़ाया। वकील थोड़े चिंतित हुए। अभी दूसरा पक्ष तो सुना ही नहीं गया! लेकिन न्यायाधीश को बीच में टोकना उचित भी न था। नसरुद्दीन ने दूसरे पक्ष को बोलने के लिए कहा। सुना शांति से। जब पूरी बात हो गई तो कहा, ठीक, 178
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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