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________________ निर्वाण उपनिषद जवान हो तो भी भेड़ था। घसीट लिया उसने उसे। नदी के किनारे ले गया और कहा कि देख पानी में, मेरी शकल और तेरी शकल में कोई फर्क है? झांका, झांकते ही गर्जना निकल गई। वह बीज की तरह जो पड़ी थी, अंकुरित हो गई। झांककर देखा, दोनों शकलें एक सी थीं। रोमांच हो गया होगा, रोएं खड़े हो गए। भूल गया कि भेड़ हूं, गर्जना फूट पड़ी भीतर से। ___ गुरु का काम समझाना कम, दिखाना ज्यादा है। कहीं किसी प्रतिबिंब में समझाना ज्यादा है कि जो मेरी शकल है, वही तुम्हारी भी शकल है। जो मेरे भीतर छिपा है, वही तुम्हारे भीतर भी छिपा है। किसी भी क्षण गर्जना निकल सकती है, क्योंकि वह भीतर का स्वभाव है। ऋषि कहता है, सदैव उस आनंद का अनुभव हो सकता है, लेकिन योग के द्वारा। योग का अर्थ है वे प्रक्रियाएं, जिनके द्वारा आप अपनी असली शकल को पहचान लेंगे। अपनी मौलिक दशा को, ओरिजनल स्टेट को समझ लेंगे। बड़े आइडेंटिफिकेशन हैं। उस सिंह पर तो ज्यादा मुसीबत न थी, एक ही उसका तादात्म्य था कि मैं भेड़ हूं। हमारे तादात्म्य का कोई अंत नहीं। हजार-हजार तादात्म्य हैं। मैं हिंदू हूं, मैं मुसलमान हूं; मैं स्त्री हूं, मैं पुरुष हूं; मैं शरीर हूं, मैं मन हूं; मैं यह हूं, मैं वह हूं। कितने हजार! मैं धनी हूं, मैं निर्धन हूं; मैं सुंदर हूं, मैं कुरूप हूं; मैं दुर्बल हूं, मैं सबल हूं। कितने! उस सिंह की तो ज्यादा कठिनाई न थी, इसलिए गुरु को बहुत आसानी पड़ी। सिर्फ नदी में चेहरा दिखा दिया। आपके इतने चेहरे हैं कि आपको पक्का पता ही नहीं कि आपका असली चेहरा क्या है। अगर नदी में भी आपको झुकाया जाए, तो आप कोई दूसरी ही मास्क जो उस वक्त अपने चेहरे पर ओढ़े होंगे, वही दिखाई पड़ेगी पानी में भी। और चेहरे इतने हैं हमारे पास कि हम चेहरों का एक संग्रह हैं। सब तादात्म्य तोड़ने पड़ें, तो स्वरूप का पता चलता है। सब मुखौटे उतारने पड़ें, तो स्वरूप का पता चलता है। ___ योग प्रक्रिया है हमारे चेहरों को तोड़ डालने की, फाड़ डालने की—सब चेहरों को, जो चेहरे भी हटाए जा सकते हैं, उन्हें हटा डालने की। जो नहीं हटाया जा सकता, वही हमारा ओरिजनल फेस, वही हमारा मौलिक चेहरा है। जो नहीं हटाया जा सकता। जो नहीं काटा जा सकता। न कोई योग काट सकता, न कोई तलवार काट सकती, न कोई विधि मिटा सकती। सब उपाय मिटाने के करने के बाद भी जो पीछे सदा शेष रह जाता है, जिसको मिटाने का कोई उपाय नहीं, हटाने का कोई उपाय नहीं, वही मेरा स्वभाव है। तो जिसको भी आप हटा सकते हैं, समझना, वह चेहरा है। आप कहते हैं, मैं हिंदू हूं, मैं मुसलमान हूं, मैं ईसाई हूं। इसे हटाने में कोई दिक्कत है! ईसाई को हिंदू होने में कोई अड़चन है? हिंदू को मुसलमान होने में कोई दिक्कत है? जाकर चोटी कटा ले, मस्जिद में चला जाए, मुसलमान हो गए। नमाज पढ़ने लगे, कल तक प्रार्थना पढ़ रहे थे। चेहरे के बदलने में जहां इतनी सुविधा हो, वह ओरिजनल फेस नहीं हो सकता। वह मुखौटा है। अभी हिंदू का मुखौटा लगाए थे, अभी मुसलमान का मुखौटा लगा लिया। गरीब को अमीर होने में कोई बड़ी अड़चन है? डाका डालना भर आना चाहिए। और तो कोई अड़चन नहीं है। अमीर को गरीब होने में कोई अड़चन है? मुल्ला नसरुद्दीन के दरवाजे पर एक भिखारी एक सुबह खड़ा हुआ भीख मांग रहा है। मुल्ला ने V 178
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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