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________________ निर्वाण उपनिषद थी, जो ज्यादा बीमार ही नहीं थे। सरल चित्त लोग थे, निर्दोष लोग थे, चालाक न थे, कनिंग न थे, बेईमान न थे। सरल थे। ॐ काफी था। होमियोपैथी की छोटी सी मात्रा उनकी बीमारी को ठीक करती थी। अब एलोपैथी के बिना नहीं चल सकता। हू एलोपैथिक है। ॐ होमियोपैथिक है। हू की चोट भयंकर है। गहरे से गहरे तक जाने वाली है। वह अजपा में उतर जाए, तो ह गायत्री बन जाएगा और विकार विसर्जित हो जाएंगे। कोई भी मंत्र गायत्री बन जाता है, जब अजपा हो जाए। यही इस सूत्र का अर्थ है, अजपागायत्री विकारदंडो ध्येयः। मन का निरोध ही उनकी झोली है। वे जो संन्यासी हैं, उनके कंधे पर एक ही बात टंगी हुई है चौबीस घंटे-मन का निरोध, मन से मुक्ति, मन के पार हो जाना। चौबीस घंटे उनके कंधे पर है। आपने एक शब्द सुना होगा, खानाबदोश। यह बहुत बढ़िया शब्द है। इसका मतलब होता है, जिनका मकान अपने कंधे पर है। खाना-बदोश। खाना का मतलब होता है मकान-दवाखाना-खाना यानी मकान। दोश का मतलब होता है कंधा, बदोश का मतलब होता है, कंधे के ऊपर। जो अपने कंधे पर ही अपना मकान लिए हुए हैं, उनको खानाबदोश कहते हैं-घुमक्कड़ लोग, जिनका कोई मकान नहीं है, कंधे पर ही मकान है। संन्यासी भी अपने कंधे पर एक चीज ही लिए चलता है चौबीस घंटे-मन का निरोध। वही उसकी धारा है सतत श्वास-श्वास की, मन के पार कैसे जाऊं? क्योंकि मनातीत है सत्य। मन के पार कैसे जाऊं? क्योंकि मनातीत है अमृत। मन के पार कैसे जाऊं? क्योंकि मनातीत है प्रभु। जाया जा सकता है। ध्यान उसका मार्ग है। आज इतना ही। फिर हम अब ध्यान में लगें। चलें मन के पार। एक पांच मिनट तीव्र श्वास ले लेंगे, ताकि शक्ति जग जाए। दूर-दूर फैल जाएं। जो लोग तेजी से करते हों, वे करीब हों। जिन्हें धीमे करना हो, वे पीछे फैल जाएं। जो लोग बहुत दूर वहां अंधेरे में बैठे हैं, वे भी यहां पास आ जाएं, ताकि मैं उन्हें दिखाई पड़ सकूँ। क्योंकि नजर मुझ पर रखनी है। जब आप पूरी ताकत में आ जाएंगे, तब मैं अपने हाथ हिलाना शुरू करूंगा, उसके साथ अपनी ताकत को बढ़ाए चले जाएं। और जब मैं ऊपर हाथ ले जाऊं, तब अपनी पूरी शक्ति लगा दें। और जब मुझे लगेगा कि आप अपनी पूरी शक्ति में हैं और वह वातावरण पैदा हो गया है जहां प्रभु को निमंत्रित किया जा सकता है, तो मैं हाथ ऊपर से उलटे करके नीचे लाऊंगा, तब आप बिलकुल पागल हो जाएं। अनेक मित्रों को शक्तिपात का कल अनुभव हुआ है। कोई भी वंचित नहीं रहेगा। अगर आप अपनी पूरी शक्ति लगाएंगे, तो वह अनुभव होना सुनिश्चित है। पहले पांच मिनट गहरी श्वास ले लें, फिर शुरू करें! 7 172
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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