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साधक के लिए शून्यता, सत्य योग, अजपा गायत्री और विकार-मुक्ति का महत्व
फिर वह आदमी पहाड़ पर चढ़ना शुरू कर देता है। फिर वह थोड़ा ऊपर पहुंचता है, और सूरज की रोशनी मिल जाती है। वहां अंधेरा नहीं है। वहां सांप नहीं सरकते। घाटी में अब भी सरक रहे होंगे। पर वह
आदमी घाटी के बाहर आ गया। वह आदमी और ऊपर चलता है, वह प्रकाश-उज्ज्वल शिखर पर पहुंच जाता है, जहां कोई भय नहीं। अब भी घाटी में सांप सरक रहे होंगे।
ठीक ऐसे ही जो अजपा तक किसी ध्वनि को पहुंचा लेता है, वह अपने भीतर उस गहराई में पहुंच जाता है, जहां विकार नहीं चलते, वे सतह पर चलते हैं-ऊपर-ऊपर। हम वहीं लड़ते रहते हैं, इसलिए परेशान रहते हैं। __ मंत्र शास्त्र कहता है, वहां मत लड़ो, वहां से हट जाओ। तुम्हारे भीतर और भी बड़ी जमीन हैं। तुम्हारे भीतर और भी फैलाव हैं। तुम्हारे भीतर और गहराइयां हैं, और शिखर हैं, वहां हट जाओ। लड़ो मत।
और एक दफा हट जाओ और अपने शिखरों को जान लो, फिर तुम लौटकर भी आ जाओगे उसी जगह पर, तो तुम वही आदमी नहीं हो। तब तुम अपने भीतर इतनी महिमा को जानकर लौटे हो कि तुम्हें क्षुद्र विकार पराजित न कर सकेंगे। तब तुम अपनी इतनी शक्ति से परिचित होकर लौटे हो कि तुम्हें अंधेरा भयभीत न कर सकेगा। तब तुमने अपने स्वरूप का दर्शन किया है और अब तुम्हें कोई भी लुभा न सकेगा। पर एक दफा वहां तक हो आओ।
तो अजपा का उपयोग है विकार-मुक्ति के लिए। और प्रत्येक विकार से मुक्ति के लिए विशेष-विशेष मंत्रों की व्यवस्था है। अगर कोई आदमी क्रोध से पीड़ित है, तो एक विशेष ध्वनि और मंत्र का आयोजन किया जाता है। उसको वह अजपा तक ले जाए, तो क्रोध के बाहर हो जाएगा। कामवासना से पीड़ित है, तो दूसरा। भय से पीड़ित है, तो तीसरा। ध्वनियों के ऐसे समूह हैं, जिनके माध्यम से आपके विकारों को चोट की जाती है और तिरोहित किया जा सकता है।
कुछ महाध्वनियां हैं। महाध्वनियां ऐसी औषधियां हैं, जो सभी विकारों पर काम करती हैं। जैसे अभी हम एक ध्वनि का उपयोग कर रहे हैं—हंकार। वह महाध्वनि है। उसकी चोट इतनी गहरी है कि अलग-अलग विकारों से लड़ने की जरूरत नहीं है। अगर वह एक ही चोट अजपा तक पहुंच जाए, तो सब विकार विसर्जित हो जाएं। . अल्लाह शब्द से हम सब परिचित हैं। अल्लाह शब्द में भी हुंकार का ही उपयोग है। और जब कोई साधक अल्लाह का उपयोग करता है, तो जो उपयोग बनता है वह होता है-अल्लाहू, अल्लाहू, अल्लाहू। फिर अल्ला छूट जाता है और लाहू, लाहू, लाहू। फिर ला भी छूट जाता है, फिर हू, हू, हू।
और आखिर में हू डूबता चला जाता है और अजपा बन जाता है। जब हू अजपा बन जाता है, तो सब विकार तिरोहित हो जाते हैं।
तिब्बती मंत्र है, महामंत्र है-ॐ मणि पद्मे हुं। वह हुं, हू का रूप है। ॐ भी हू जैसा काम कर सकता है। लेकिन अब शायद नहीं। बहुत सरल लोग हों, तो ॐ भी हू का काम करता है, लेकिन बहुत जटिल लोग हों तो काम नहीं करता। क्योंकि ॐ की जो चोट है, वह बहुत माइल्ड है। ॐ की जो चोट है, वह बहुत माइल्ड है। हू की चोट बहुत गहरी है। घाव गहरा है।।
ॐ की चोट बहुत माइल्ड है। वह बहुत कम मात्रा की दवा है। वह उनके लिए उपयोग में लाई गई
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