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योगेनसदानंदस्वरूप दर्शनम् । आनंद भिक्षाशी ।
महाश्मशानेऽप्यानंद वने वासः ।
एकांतस्थान मठम्। उनमन्यवस्था शारदा चेष्टा । उन्मनी गतिः । निर्मलगात्रम् निरालंब पीठम् । अमृतकल्लोलानंद क्रिया ।
योग द्वारा वे सदैव आनंद-स्वरूप का दर्शन करते हैं। आनंद-रूप भिक्षा का भोजन करते हैं।
महाश्मशान में भी आनंददायक वन के समान निवास करते हैं।
एकांत ही उनका मठ है।
प्रकाश - अवस्था के लिए वे नित-नूतन चेष्टा करते हैं। अ-मन में ही वे गति करते हैं।
उनका शरीर निर्मल है, निरालंब आसन है। जैसे निनाद करती अमृत- सरिता बहती है, ऐसी उनकी क्रिया है ।