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निर्वाण उपनिषद
कुछ पता न चले, इतना तो पता चलता है कि मैं हूं। अपना तो पता चलता है अंधेरे में भी। तो इसका मतलब यह हुआ कि अपने होने में जरूर कोई प्रकाश होगा, जो अंधेरे में भी दिखाई पड़ता हूं मैं अपने को, कोई चेतना होगी। इतना तो तय है कि मेरा होना किसी और चीज के आधार से मुझे पता नहीं चलता, मेरे ही आधार से पता चलता है।
लेकिन हम भीतर तो कभी जाकर देखते नहीं कि वहां एक स्व-संवित्, स्व- प्रकाशित, स्व-ज्योतिर्मय तत्व मौजूद है। और कभी अगर देखें भी, तो हम ऐसी उलटी कोशिशें करते हैं, जिसका कोई हिसाब नहीं ।
एक रात मुल्ला नसरुद्दीन अपने घर के बाहर पकड़ लिया गया। दो बजे थे। पुलिस वाले ने जोर से धीमे-धीमे आकर उसकी कमर पकड़ ली। वह एक खिड़की में से झांक रहा था । घर उसी का था । अंधेरी रात थी। लेकिन पुलिस वाले को क्या पता? जब पुलिस वाले ने पकड़ा तो मुल्ला ने कहा, धीमे-धीमे आवाज मत करना ! कहीं वह जाग न जाए। उसने पूछा, कौन जाग न जाए ? तुम खुद ही तो मुल्ला नसरुद्दीन मालूम पड़ते हो ! उसने कहा कि मैं ही हूं, लेकिन चुप! उसने कहा, कर क्या रहे हो ? बड़ी देर से मैं देख रहा हूं, तो मैं समझा कोई चोर। इधर-उधर घूमते हो, इस खिड़की से झांकते हो, उस दरवाजे से... ।
उसने कहा, तू बकवास तो मत कर। जोर से तो मत बोल। सुबह आना, बता दूंगा। तो उसने कहा, मैं छोड़कर भी नहीं जा सकता। बात क्या है? नसरुद्दीन ने कहा, नहीं मानता, तो सुन। बात यह है कि लोग कहते हैं कि मैं नींद में उठकर चलता हूं। सो आई एम जस्ट चेकिंग । वे ठीक कहते हैं कि नहीं। मैं खिड़की में से देख रहा हूं कि मुल्ला चल तो नहीं रहा है। लेकिन कोई नहीं चल रहा है, बिस्तर पर भी कोई नहीं है। कोई सो भी नहीं रहा है, चलने का तो सवाल ही नहीं है। आधी रात खराब हो गई। अभी तक तो चलता हुआ दिखाई नहीं पड़ा। लोग कहते हैं, सोते में चलता हूं। जस्ट चेकिंग।
कभी-कभी जब हम अपने को भी ऐसे ही खोजने जाते हैं, तो ऐसे ही दरवाजे-खिड़की से झांकते हैं। अपने ही भीतर दरवाजे-खिड़की से झांकते हैं। वहां कोई न मिलेगा, क्योंकि जिसको खोजने गए हैं, वह बाहर खड़ा है।
स्व-संवित होने का अर्थ है, जिसे हम बाहर से नहीं जान सकते हैं। जिसे हमें भीतर से ही जानना पड़ेगा। जिसे हम भीतर से जान ही रहे हैं, पर न मालूम भूल गए हैं, विस्मरण हो गया है, याददाश्त खो गई है।
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मुल्ला भागा जा रहा है अपने गधे पर बहुत तेजी से । सारा गांव चौकन्ना हो गया है। सड़क पर लोगों ने रास्ते छोड़ दिए हैं। लोगों ने चिल्लाकर पूछा कि मुल्ला जा कहां रहे हो? मुल्ला ने कहा, मेरा गधा खो गया है। तो लोगों ने कहा, ठहरो, तुम गधे पर सवार हो। उसने कहा, अच्छा बताया। मैं इतनी तेजी में था कि मैं सारी जमीन खोज आता और पता न चलता कि गधे पर बैठा हुआ हूं। मैं तेजी में था, इन टू मच हरी । बहुत जल्दी में था। ठीक किया लोगो, जो याद दिला दिया । अन्यथा आज बड़ी भूल हो जाती, लौटना मुश्किल हो जाता, क्योंकि नीचे देखने की फुर्सत किसको है! मेरी आंखें तो आगे टिकी थीं कि गधा है कहां। चारों तरफ देख रहा था; और नीचे देखने का मौका, मैं कहता हूं, निश्चित ही न आता । क्योंकि जो चारों तरफ देख रहा है, वह नीचे कैसे देखेगा ?
जो बाहर देख रहा है, वह भीतर कैसे देखेगा ?
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