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साधक के लिए शून्यता, सत्य योग, अजपा गायत्री और विकार-मुक्ति का महत्व
मिलने वाला जो अनुभव है, अमरपदं न तत् स्वरूपम्, उसे जाने बिना, उसे पाए बिना अमर पद नहीं है। उसे पाए बिना अमृत की कोई उपलब्धि नहीं है, मृत्यु बनी ही रहेगी। इसका अर्थ हुआ, जहां तक मन होगा, वहां तक मृत्यु होगी। मन की सीमा मृत्यु की सीमा है। मन और मृत्यु एक ही अस्तित्व के नाम हैं। मन के पार अमृत है, मन की सीमा के पार अमृत है।
और अमृत को पाए बिना चैन नहीं मिल सकता-जन्म-जन्म, कोटि-कोटि जन्म भटककर भी चैन नहीं मिल सकता। क्योंकि जब मृत्यु पीछा कर रही हो निरंतर, तो कैसे चैन मिल सकता है? मृत्यु गले में हाथ डाले खड़ी हो निरंतर, तो कैसे चैन मिल सकता है? थोड़ी-बहुत देर भुलावा हो सकता है, वह दूसरी बात है। लेकिन फिर-फिर याद आ जाती है, फिर-फिर याद आ जाती है। मौत फिर-फिर घेर लेती है। अमृत को जाने बिना निश्चितता नहीं हो सकती। जब तक मुझे लगता है कि मिट जाऊंगा, मिट सकता हूं, तब तक प्राण कंपते ही रहेंगे। __एक बहुत कीमती विचारक हुआ पश्चिम में-सोरेन कीर्कगार्ड। उसने एक किताब लिखी है, उसमें उसने कहा है कि मैन इज़ ए ट्रैम्बलिंग, आदमी एक कंपन है। पर व्हाई मैन इज़ ए ट्रैम्बलिंग? बिकाज़ आफ डेथ। आदमी क्यों एक कंपन है? मृत्यु के कारण। मृत्यु चौबीस घंटे सामने खड़ी हो, कंपेंगे नहीं तो क्या करेंगे? अमृत को पाए बिना कंपन नहीं मिटेगा। कंपन के मिटे बिना स्वभाव की सरलता, . निर्दोषता अनुपलब्ध रहेगी।
ऋषि कहता है, उस आत्मस्वरूप के बिना अमरपद नहीं है। - उस आत्मपद को जानना ही पड़ेगा। उस आत्मस्वरूप को जानना ही पड़ेगा। उसे जानना ही पड़ेगा, जो है। उस मन को छोड़ना ही पड़ेगा, जो भरमाता है, भटकाता है, भ्रम पैदा करता है, स्वप्न जन्माता है।
आदिब्रह्म स्व-संवित्।
वह जो ब्रह्म है, वह जो चैतन्य है हमारे भीतर छिपा हुआ, आदि चैतन्य है हमारे भीतर, वह स्व-संवित् है। यह बहुत कीमती विचार है उपनिषदों का-स्व-संवित्, सेल्फ-कांशस।
यहां हम बैठे हैं। बिजली बुझ जाए, तो फिर हम एक-दूसरे को दिखाई न पड़ेंगे निश्चित ही। क्योंकि एक-दूसरे का देखना जो है, वह स्व-प्रकाशित नहीं है, पर-प्रकाशित है। एक प्रकाश पर निर्भर है। यह बिजली जलती है, तो मैं आपको देख रहा हूं। बिजली बुझ गई, तो मैं आपको नहीं देख सकूँगा। सूरज है, तो मुझे रास्ता दिखाई पड़ रहा है; सूरज ढल गया, तो मुझे रास्ता दिखाई नहीं पड़ता, क्योंकि रास्ता स्व-प्रकाशित नहीं है। दूसरे से प्रकाशित है। ____ मुल्ला नसरुद्दीन अपने कमरे में बैठा है। अमावस की रात है। एक मित्र मिलने आया है। सांझ थी, सूरज ढल रहा था, तब आया था। तब सब चीजें दिखाई पड़ती थीं। फिर गपशप में काफी वक्त निकल गया। रात अंधेरी हो गई। तो मित्र ने मुल्ला नसरुद्दीन से कहा कि तुम्हारे बाएं हाथ की तरफ दीया रखा है, ऐसा मैंने सांझ को देखा था। उसे जला क्यों नहीं लेते? मुल्ला ने कहा, आर यू मैड! अंधेरे में पता कैसे चलेगा कि कौन सा मेरा बायां हाथ है और कौन सा मेरा दाहिना?
और अगर अंधेरे में पता चलता है कि कौन सा बायां है और कौन सा दायां, तो भीतर कोई शक्ति है जो स्व-संवेदित है, स्व-प्रकाशित है। कुछ पता न चले, इतना तो पता चलता है कि मैं हूं। अंधेरे में
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