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________________ निर्वाण उपनिषद होती। वह सिर्फ उन्हें ही अनुभव में आना शुरू होता है, जो इतने विकाररहित हो गए होते हैं कि अब नग्न हो सकते हैं और प्रकट हो सकते हैं। वह सिर्फ उन्हीं के निकट जाहिर होता है, जिनके पास छिपाने को कुछ भी नहीं रह जाता। इसलिए ऋषि कहते हैं, वह शून्य है। यह संकेत नहीं, उसकी सत्ता है। सच्चा और सिद्ध हुआ योग संन्यासी का मठ है। सत्यसिद्धयोगो मठः।। सिद्ध हुआ योग ही संन्यासी का मठ है, वही उसका मंदिर है, वही उसका आवास। सिद्ध हुआ योग! बड़ी जागरूकता ऋषि के मन में होगी। सिर्फ इतना नहीं कहा कि योग उसका मंदिर है। क्योंकि योग सिर्फ बातों में हो सकता है, चर्चा में हो सकता है, सिद्धांत में हो सकता है। उस योग का कोई मतलब नहीं है। योग म्यूजियम में भी हो सकता है, यह मुझे आज पता चला। एक मित्र निमंत्रण दे गए हैं ब्रह्माकुमारियों का। उसमें लिखा है कि राज-योग का म्यूजियम। मुझसे कह गए कि आप जरूर देखें। राज-योग का बिलकुल म्यूजियम बनाकर रखा है। - अभी योग इतना नहीं मर गया है कि म्यूजियम बनाना पड़े। म्यूजियम तो मरी हुई चीजों के लिए बनाना पड़ता है। बट्रेंड रसेल के ऊपर कोई व्यक्ति थीसिस लिखना चाहता था। तो बट्रेंड रसेल ने कहा कि कम से कम मुझे मर तो जाने दो। अन्वेषण का काम तो मरने के बाद ही शुरू होना चाहिए, अभी तो मैं जिंदा हूं। और अभी तुम कैसे थीसिस लिखोगे? अभी जिंदा आदमी न मालूम और क्या-क्या कहेगा। तुम्हारी थीसिस गड़बड़ हो सकती है। तुम थोड़ा वेट करो, थोड़ा ठहरो। इतने घबराओ मत, मैं भी मरूंगा ही। . फिर तुम थीसिस लिख लेना। लेकिन राज-योग के म्यूजियम का क्या मतलब हो सकता है? योग कोई म्यूजियम की बात है ? लेकिन हो गई करीब-करीब। __इसलिए ऋषि नहीं कहता कि योग उसका मठ है। क्योंकि योग सिद्धांत में हो सकता है, चर्चा में हो सकता है, म्यूजियम में हो सकता है, विचार में हो सकता है, दर्शन में हो सकता है। ऋषि कहता है, सिद्ध हुआ योग-वही उसका मठ है। सिद्ध हुआ योग। जब वह अनुभूति बन जाए स्वयं की, तभी। वह पतंजलि के शास्त्र में तो लिखा है, उस शास्त्र को सिर पर लेकर ढोते रहें, तो कोई हल नहीं होता। उस शास्त्र को कंठस्थ कर लें, तो भी कुछ नहीं होता। उस शास्त्र पर बड़ी व्याख्याएं कर डालें, तो भी कुछ नहीं होता। उस शास्त्र के बड़े जानकार बन जाएं, ऐसा कि पतंजलि भी मिल जाए तो डरे, तो भी कुछ नहीं होता। वह सिद्ध हो योग। क्योंकि योग जो है, वह विचार नहीं है, अनुभव है। ___ सिद्ध हुआ योग ही मठ है। लेकिन ऋषि एक शर्त और लगाता है, सच्चा और सिद्ध हुआ-ट्र एंड एक्सपीरिएंस्ड। यह और कठिन शर्त है। इसका मतलब यह हुआ कि गलत योग भी सिद्ध हो सकता है। इसलिए ऋषि एक शर्त और लगाता है कि सत्य और सिद्ध हुआ योग। गलत योग भी सिद्ध हो सकता है। इस जगत में कोई भी चीज ऐसी नहीं है, जिसका गलत रूप न हो सके। सब चीजों के गलत रूप हो सकते हैं। और सही रूप जानने में बड़ा कठिन होता है, इसलिए गलत रूप चुनने सदा आसान होते हैं। 7 164
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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