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साधक के लिए शून्यता, सत्य योग, अजपा गायत्री और विकार-मुक्ति का महत्व
दीवार पर लिख छोड़ा था-गॉड इज़ नोव्हेयर, ईश्वर कहीं भी नहीं है। उसका छोटा बच्चा पैदा हुआ, बड़ा हुआ, स्कूल पढ़ने जाने लगा। अभी नया-नया पढ़ रहा था, तो पूरे लंबे अक्षर नहीं पढ़ पाता था। नोव्हेयर काफी बड़ा है। वह बच्चा पढ़ रहा था दीवार पर लिखा हुआ गॉड इज़ नोव्हेयर, उसने पढ़ा, गॉड इज़ नाऊ हियर। तोड़कर पढ़ा। वह नोव्हेयर जो था, उसे तोड़ लिया। बड़ा लंबा शब्द था। उतना लंबा उसकी अभी सामर्थ्य के बाहर था।
बाप तो बहुत चौंका। लिखा था, गॉड इज़ नोव्हेयर। पढ़ने वाले ने पढ़ा, गॉड इज़ नाउ हियर। उस दिन से बाप बड़ी मुश्किल में पड़ गया। जब भी वह दीवार पर देखता, तो उसको भी पढ़ाई में आने लगा, गॉड इज़ नाउ हियर। ___ एक दफा बात खयाल में आ जाए, तो फिर उसे भुलाना बहुत मुश्किल हो जाता है। नोव्हेयर, नाउ हियर भी हो सकता है। जो कहीं नहीं है, वह सब कहीं भी हो सकता है। जो कहीं नहीं है, वह यहीं और अभी भी हो सकता है। लेकिन उसकी उपस्थिति अनुपस्थिति जैसी है। हिज़ प्रेजेंस इज़जस्ट लाइक ऐब्सेंस।
असल में अगर परमात्मा की उपस्थिति भी उपस्थिति जैसी हो, तो बहुत वायलेंट हो जाए, बहुत हिंसक हो जाए। उसे ऐसा ही होना चाहिए कि हमें पता ही न चले कि वह है, नहीं तो हम बड़ी मुश्किल में पड़ जाएं। खयाल है आपको! ___मैंने सुना है कि एक ईसाई नन, एक ईसाई साध्वी, बाइबिल में पढ़ते-पढ़ते इस खयाल पर पहुंच गई। बाइबिल में उसने पढ़ा कि ईश्वर सब जगह है और हर जगह देखता है। वह बड़ी मुश्किल में पड़ी। उसे लगा कि वह बाथरूम में भी होता ही होगा। वह कपड़े पहनकर स्नान करने लगी कि कहीं नंगा न देख ले। और दूसरी साध्वियों को पता चला। उन्होंने कहा, तू यह क्या पागलपन करती है कि तू बाथरूम में कपड़े पहनकर स्नान करती है! वहां कोई भी नहीं है। उस साध्वी ने कहा कि नहीं, जब से मैंने पढ़ा बाइबिल में, उसमें लिखा है, सब जगह वह देख रहा है, उसकी आंख हर जगह है, तो इसलिए मैं कपड़े पहनकर ही नहा लेती हूं।
लेकिन उस पागल को पता नहीं कि जो बाथरूम के भीतर देख सकता है, वह कपड़े के भीतर भी देख सकता है। उसे इसमें क्या कठिनाई होगी? नथिंग इज़ इम्पासिबल फार हिम। अगर दीवार के भीतर ही घुस जाता है, तो कपड़े के भीतर ऐसी कौन सी अड़चन आती होगी। और कपड़े के भीतर जो घुस सकता है, दीवार के भीतर जो घुस सकता है, चमड़ी और हड्डी उसको कोई बाधा बनेगी? और जो इतना सब कहीं है, क्या वह भीतर भी न होगा? प्राणों में न होगा? लेकिन उसकी मौजूदगी बड़ी नान-वायलेंट है, बड़ी अहिंसात्मक है। ___ ध्यान रखें, मौजूदगी में हिंसा हो जाती है। बाप बैठा है, तब देखें, बेटे की चाल बदल जाती है। बाप कमरे में बैठा है, बेटा जब निकलता है, तो उसकी चाल बदल जाती है, क्योंकि बाप की मौजूदगी हिंसात्मक होगी। अगर परमात्मा इस तरह मौजूद हो, तो जीवन बड़ी मुश्किल में पड़ जाए। जीना मुश्किल ही हो जाए, उठना-बैठना मुश्किल हो जाए, कुछ भी करना मुश्किल हो जाए।
नहीं, आदमी के जीवन के लिए पूरी स्वतंत्रता इसीलिए संभव है कि उसकी उपस्थिति अनुपस्थिति जैसी है। वह सिर्फ उन्हें ही दिखाई पड़ना शुरू होता है, जिन पर उसकी मौजूदगी की कोई हिंसा नहीं
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