SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निर्वाण उपनिषद क्या होगा? बुराई है, बीमारी है, मृत्यु है, दुख है, इसका क्या होगा? क्या यह भी परमात्मा है? जो कहता है, पूर्ण है परमात्मा, वह यह भी स्वीकार कर रहा है कि बुराई है, वह भी परमात्मा है। वह जो चोर है, वह भी परमात्मा है। चोर परमात्मा है, है परमात्मा ही। ईसाइयत को बड़ी कठिनाई पड़ी इस बात को समझने में। क्योंकि अगर चोर भी परमात्मा है और अगर राम भी रावण हैं, तो फिर आदमी के लिए विकल्प क्या है? आदमी क्या चुने? क्या बुरा है? इस जगत में कोई बुराई नहीं है। अगर सभी परमात्मा है, तो फिर बुराई नहीं है। अकाल आता है, बाढ़ आती है, लोग मर जाते हैं, युद्ध होता है। सिर्फ हिंदुओं ने हिम्मत की कि वह भी परमात्मा है। यह हिम्मत बहुत अदभुत है। समझ के थोड़े पार भी है। क्योंकि हमारा भी मन कहता है कि इसे इनकार करो। अच्छाई को परमात्मा से जोड़ दो, बुराई को अलग करो। लेकिन ऋषि कहते हैं, बुराई को फिर कहां रखोगे? फिर तुम्हें शैतान निर्मित करना पड़ेगा। बुराई को रखोगे कहां? बुराई भी परमात्मा है। असल में अगर बुराई भी परमात्मा है, तो बुराई बुराई हो नहीं सकती अंततः। वह सिर्फ हमारे देखने की भूल होगी या पूरा पर्सपेक्टिव न होगा, पूरी बात दिखाई न पड़ रही होगी। एक घटना घटती है, पैर में कांटा चुभ जाता है, आप कहते हैं, यह तो सीधी बुराई है। दुख हो रहा है, पीड़ा हो रही है। ___ हसन नाम का सूफी फकीर एक रास्ते से गुजर रहा है। पत्थर से चोट लग गई और पैर से खून बहने लगा, तो उसने हाथ जोड़कर आकाश की तरफ परमात्मा को धन्यवाद दिया कि तेरी बड़ी कृपा है। उसके शिष्य तो बहुत हैरान हुए। उन्होंने कहा, यह कृपा है! तो अकृपा क्या होती है? पैर में पत्थर लग गया है, खून बह रहा है; अगर यह कृपा है, तो हमें छुट्टी दो। हम सब परमात्मा की कृपा को खोजने निकले हैं और तुम्हारे पीछे इसीलिए चल रहे हैं। अगर यह कृपा है, तो हम वापस लौट जाएं। तो हसन ने कहा कि जो इसमें कृपा न देख पाएगा, उसे कृपा कभी भी न मिल सकेगी। और फिर मैं तुमसे कहता हूं कि आज मुझे फांसी होनी चाहिए थी, लेकिन उसकी कृपा है कि सिर्फ पैर में एक पत्थर लगकर मैं बच गया हूं। कर्म तो मेरे ऐसे थे कि आज फांसी निश्चित थी। नियति तो मेरी फांसी की थी, लेकिन उसकी कृपा है। और ऐसा मत सोचना कि हसन को फांसी लगती, तो हसन न कहता कि तेरी बड़ी कृपा है। तो भी यही कहता। क्योंकि और बड़ी फांसियां हो सकती हैं। फांसी से भी बड़ी फांसियां हो सकती हैं। मुल्ला नसरुद्दीन ने इकट्ठी चार शादियां कर ली थीं। जिस जगह वह रहता था, उस जगह का कानून इसे फांसी के योग्य मानता था। अदालत में हाजिर होना पड़ा। मजिस्ट्रेट ने कहा कि जुर्म तो तुमने बहुत भयंकर किया है। फांसी ही इसकी सजा है। लेकिन मुल्ला, हम तुम्हें फांसी नहीं देते। हम तुम्हें माफ करते हैं और यह दंड देते हैं कि चारों स्त्रियों के साथ जाकर रहो। मुल्ला ने कहा, यह फांसी से भी बदतर है। इससे तो तुम फांसी दे दो, बड़ी कृपा होगी। फांसी से बदतर स्थितियां हो सकती हैं। अगर हसन को फांसी भी लगती, तो वह कहता, तेरी बड़ी कृपा है। नहीं, सवाल यह नहीं है कि कौन सी बात हुई है। सवाल इस हृदय का है, जो हर जगह परमात्मा को देख लेता है। - ऋषि कहते हैं कि वह परमात्मा या तो पूर्ण है, सभी कुछ वही है, क्षुद्रतम से लेकर विराटतम तक वही V160
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy