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साधक के लिए शून्यता, सत्य योग, अजपा गायत्री और विकार-मुक्ति का महत्व
जगत में जिस चीज का भी अस्तित्व है, उसमें एक विधायक और एक नकारात्मक हिस्सा संयुक्त रूप से, जैसे बैलगाड़ी के दो चाक या आदमी के दो पैर, ऐसे जिस चीज की भी सत्ता है, उसके दो पैर हैं; एक नकार है, एक विधेय है।।
लेकिन परमात्मा अगर नकार है, तो विधेय कौन होगा फिर? फिर तो हमें एक परमात्मा और सोचना पड़े। और इसीलिए कुछ धर्मों ने परमात्मा के साथ शैतान को भी सोचा हुआ है। वह नंबर दो का परमात्मा है, बुरा परमात्मा। लेकिन है वह, और मिट नहीं सकता। क्योंकि उनको खयाल में आया है कि सत्ता तो विभाजित है। अगर परमात्मा शुभ है, तो उसके विपरीत अशुभ की भी सत्ता होनी चाहिए, इसलिए शैतान
को बना ही लेना पड़ा। ___सिर्फ भारत एक देश है, जहां हमने परमात्मा के विपरीत किसी सत्ता को निर्मित नहीं किया। ईसाइयत भी शैतान के बाबत सोचती है, इस्लाम भी शैतान के बाबत सोचता है, यहूदी भी शैतान के बाबत सोचते हैं, पारसी भी शैतान के बाबत सोचते हैं। सिर्फ इस देश में कुछ लोगों ने बिना शैतान के और परमात्मा के होने की संभावना को स्वीकार किया है। फिर अगर परमात्मा को स्वीकार करना है बिना शैतान के...और शैतान के साथ स्वीकार करना कोई स्वीकार करना नहीं है, क्योंकि फिर एक कांस्टैंट कांफ्लिक्ट है, जिसका कोई अंत नहीं होगा। शैतान और परमात्मा का कभी अंत नहीं हो सकता। वह विरोध चलता ही रहेगा।
सुना है मैंने कि मुल्ला नसरुद्दीन जिस दिन मरा, मौलवी उसे पश्चात्ताप करवाने आया है। और मुल्ला से कहता है, पश्चात्ताप करो, परमात्मा से क्षमा मांगो और मरते वक्त शैतान को इनकार करो। मुल्ला बिलकुल चुप रहा। आंख खोलकर उसने देखा जरूर, फिर आंख बंद कर लीं। मौलवी ने कहा, तुमने सुना नहीं? ज्यादा देर नहीं है, आखिरी घड़ी है। क्षण दो क्षण की श्वास है। परमात्मा को स्वीकार करो और शैतान को इनकार करो। मुल्ला ने कहा कि आखिरी वक्त में मैं किसी को भी नाराज नहीं करना चाहता। क्योंकि पता नहीं, आगे की यात्रा किस तरफ हो! मैं चुप ही रहूंगा। जिस तरफ चला जाऊंगा, उसी की प्रशंसा कर दूंगा। मगर अभी तो कुछ पक्का नहीं है। तो ऐसे डेलिकेट मोमेंट में, मुल्ला ने कहा, ऐसे नाजुक क्षण में जिद मत करो। अभी कुछ पक्का नहीं है, शैतान की तरफ जाऊं कि परमात्मा की तरफ जाऊं। और किसी को नाराज करना ठीक भी नहीं। जिंदगी की बात और थी, अब तो यह आखिरी क्षण है, तो चुप ही मुझे मर जाने दो। ____ अगर शैतान और परमात्मा का अस्तित्व है साथ-साथ, तो यह अस्तित्व सदा ही द्वंद्व होगा, और द्वंद्वातीत होना असंभव है। इसलिए ऋषि नहीं कहते कि अस्तित्व द्वंद्व है। ऋषि कहते हैं, जगत द्वंद्व है-जगत, जो हमें दिखाई पड़ता है वह। लेकिन जो है, वह निद्वंद्व है।
उस निद्वंद्व को कैसे प्रकट करें? कहें विधेय, पॉजिटिव? कहें निषेध, निगेटिव? तो मुश्किल हो जाएगी, द्वंद्व खड़ा हो जाएगा। तो दो ही उपाय हैं उसको प्रकट करने के। या तो कह दें दोनों, अर्थात पूर्ण-एक साथ। और या कह दें दोनों नहीं, अर्थात शून्य। ये दो उपाय हैं। या तो परमात्मा को कह दें पूर्ण। उसका अर्थ यह हुआ कि जो भी इस जगत में है, सभी परमात्मा है।
इससे बड़ी परेशानी पश्चिम में, खासकर ईसाई विचारकों को होती है। वे कहते हैं, फिर बुराई का
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