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स्वप्न-सर्जक मन का विसर्जन और नित्य सत्य की उपलब्धि
उनका एक है। इशारा एक है। शब्द ही अलग-अलग हैं। .
लेकिन बड़ा उपद्रव पैदा हुआ। बड़ा उपद्रव पैदा हुआ, क्योंकि नाम के आग्रह इतने गहन हो गए कि जिसका नाम था, उसकी हमें चिंता ही न रही। राम वाला उससे लड़ रहा है, जो कहता है, उसका नाम रहमान है। तलवारें चल जाती हैं। अल्लाह वाला उसकी हत्या कर रहा है, जो कहता है, उसका नाम भगवान है। असल में मन वाले लोग झूठे परमात्मा भी खड़े कर लेते हैं, रस्सी में सांप देखने लगते हैं, नाम में ही सत्य देखने लगते हैं।
नाम सिर्फ नाम है, इशारा है। और सब इशारे बेकार हो जाते हैं, जब वह दिख जाए, जिसकी तरफ इशारा है। अगर मैं उंगली उठाऊं और कहूं कि वह रहा चांद और आप मेरी उंगली पकड़ लें और कहें कि मिल गया चांद, तो वैसी झंझट हो जाएगी। उंगली बेकार है। इशारा पर्याप्त है। उंगली छोड़ दें, चांद को देखें। तो चांद को कोई देखता नहीं, उंगली पहले दिखाई पड़ती है। नाम पकड़ में आ जाते हैं।
लेकिन इस भूमि पर जिन्होंने जाना, उन्होंने बहुत पहले ही नामों के खतरे की घोषणा की। वह खतरा अभी भी दूसरे लोग नहीं समझ पाए। उन्होंने निरंतर यह कहा कि उसके सैकड़ों नाम हैं। सब नाम उसके हैं। सभी नाम उसके हैं। कोई भी नाम दे दो, चलेगा। कोई भी नाम पर्याप्त नहीं है और कोई भी नाम
कामचलाऊ है, सहयोग दे सकता है। . यही वजह हुई कि हिंदू धर्म कन्वर्टिंग रिलीजन नहीं हो सका। यही वजह बनी कि हिंदू धर्म दूसरे
धर्म के व्यक्ति को अपने धर्म में बदलने की चेष्टा से नहीं भर सका। कोई कारण नहीं था। क्योंकि जब सभी नाम उसके हैं, तो जो अल्लाह कहता है, वह भी वही कहता है, जो राम कहने वाला कहता है। जो कुरान से उसकी तरफ इशारा लेता है, वह भी वही इशारा लेता है, जो वेद से उसकी तरफ इशारा लेता है। इसलिए कुरान को प्रेम करने वाले को वेद के प्रेम की तरफ लाने की नाहक चेष्टा व्यर्थ है। अगर कुरान काम कर रहा है, तो पर्याप्त है। काम उसी का हो रहा है। अगर बाइबिल काम करती है, तो काम पर्याप्त है। __ हिंदू-दृष्टि से ज्यादा उदार दृष्टि पृथ्वी पर पैदा नहीं हो सकी। लेकिन वही हिंदुओं के लिए मुसीबत बन गई। बन ही जाने वाली थी। इस सोए हुए जगत में जागे हुए लोगों की बात अगर सोए हुए लोग उपयोग में लाएं, तो बहुत मुसीबत बन सकती है। - सभी नाम उसके हैं। कोई संघर्ष नहीं, कोई विरोध नहीं। सभी इशारों से काम चल जाएगा। ऋषि कहता है, ब्रह्म कहो, विष्णु कहो, शिव कहो, जो भी कहो, लक्ष्य वह एक है, जो है। उसे जानना है, जो परिवर्तित नहीं होता, जो शाश्वत है, नित्य है। जो कल भी वही था, आज भी वही है, कल भी वही होगा। जो न नया है, न पुराना है। क्योंकि जो नया है, वह कल पुराना पड़ जाएगा। जो पुराना है, वह कल नया था। जो परिवर्तित होता है, उसे हम कह सकते हैं—नया, पुराना। लेकिन जो नित्य है, वह न नया है, न पुराना। वह पुराना नहीं पड़ सकता, इसलिए उसे नया कहने का कोई अर्थ नहीं है। वह सिर्फ है। __वह जो है मात्र, उसे जानना ही लक्ष्य है। लेकिन उसे जानने के लिए वह जो हम कल्पनाएं फैलाते हैं, उन्हें तोड़ देना पड़े, गिरा देना पड़े। हम सब भरी हुई आंखों से देखते हैं जगत को, खाली आंखों से देखना पड़े। हम सब भरे हुए मन से देखते हैं जगत को, खाली मन से देखना पड़े। हम धारणाएं लेकर
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