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स्वप्न - सर्जक मन का विसर्जन और नित्य सत्य की उपलब्धि
उठ जाना संसार के पार उठ जाना है। मन स्वप्न है। मन के पार उठ जाना स्वप्न के पार उठ जाना है। वैसे ही यह देह आदि समुदाय मोह के गुणों से युक्त है। यह सब रस्सी में भ्रांति से कल्पित किए गए सर्प के समान मिथ्या है। तद्रज्जुस्वप्नवत् कल्पितम् ।
जैसे राह पर पड़ी हो रस्सी और कोई सांप देख ले। कठिन नहीं है सांप देखना रस्सी में । भयभीत आदमी तत्काल देख लेता है। भयभीत आदमी सांप के लिए तैयार रहता है कि कहीं दिख जाए। रस्सी दिखी कि वह भागा। लेकिन रस्सी में भी सांप दिखे, तो दौड़ तो लगवा ही देता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता । पसीना तो छूट ही जाता है। छाती तो धड़कने ही लगती है। घबड़ाहट तो फैल ही जाती है। हाथ-पैर तो कंपने ही लगते हैं। रस्सी में देखा गया सांप भी काम तो वही कर देता है, जो असली सांप करता है। क्या फर्क है ?
कोई फर्क नहीं है, जहां तक आपका संबंध है। रस्सी का जहां तक संबंध है, वहां तक रस्सी बेचैन हो सकती है कि यह आदमी कैसा है, देखकर भाग रहा है। हम सिर्फ रस्सी हैं।
मुल्ला नसरुद्दीन गांव के बाहर जा रहा था। मित्रों ने कहा, उस रास्ते से न गुजरो । वहां डाकेजनी चलती है। रास्ता निर्जन हो गया है। और कोई जाता नहीं। लेकिन जाना जरूरी था। काम कुछ ऐसा था कि मुल्ला ने कहा, जाना तो पड़ेगा ही। लेकिन ज्यादा मैं कुछ लेकर नहीं जा रहा हूं। मैं और मेरा गधा, हम दोनों जा रहे हैं। पर उन लोगों ने कहा कि गधा भी छीना जा सकता है। तो मित्र ने एक तलवार दे दी कि तुम तलवार ले जाओ। कोई मौका आ जाए, काम पड़ जाए।
नसरुद्दीन तलवार लेकर चले। डरे हुए तो थे ही कि कोई गधा न छीन ले । इसका आदमी को डर कम होता है कि खुद न मर जाए। इसका ज्यादा डर होता है कि उसका ? गधा न छिन जाए, मकान न छिन जाए, धन छिन जाए। यह न हो जाए, वह न हो जाए। खुद के खोने का इतना डर नहीं होता, क्योंकि खुद की कीमत का कोई पता नहीं होता। मकान की कीमत का पक्का पता है, गधे की कीमत का पक्का पता है।
नसरुद्दीन अपनी नंगी तलवार लिए हुए बिलकुल तैयार कि जैसे ही कोई हमला करे... । देखा कि दूर से एक आदमी चला आ रहा है। समझ गया कि अब आई मुसीबत। रास्ता निर्जन है, कोई राहगीर निकलता नहीं। तो राहगीर तो हो नहीं सकता, डाकू ही हो सकता है। नसरुद्दीन के हाथ में नंगी तलवार देखकर उस आदमी ने भी अपनी तलवार खींचकर निकाल ली, क्योंकि वह भी डरा हुआ था। गांव वालों ने उससे भी कहा था कि तलवार ले जा, रास्ता खतरनाक है, निर्जन है। जब उसने तलवार निकाली, नसरुद्दीन ने कहा, भाई, ठहर ! मुझ पर दो चीजें हैं, यह गधा है और तलवार है। क्या तू चाहता है, लूट ले। हम खुद ही तुझे दिए देते हैं। उस आदमी ने सोचा कि... उसने सोचा कि मुफ्त कुछ मिल रहा है, तो उसने सोचा, तलवार महंगी चीज है। कहा, गधा तुम्हीं रखो, तलवार मुझे दे दो। उसने कहा, तुम तलवार ले लो।
नसरुद्दीन ने तलवार दे दी। काम करके जब घर वापस लौटे, तो मित्र ने कहा, ठीक रहा, कोई दिक्कत तो नहीं आई? नसरुद्दीन ने कहा, तलवार बड़ी काम आई। पूछा, तलवार कहां है? कहा, वह तो काम आ गई। वह आदमी गधा छीनने के लिए बिलकुल तैयार था, तो मैंने तलवार उसको देकर अपना गधा बचा लिया।
प्रोजेक्शंस हैं। चौबीस घंटे हम वह देख रहे हैं, जो हम देखना चाहते हैं । रस्सियों में सांप देख रहे
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