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निर्वाण उपनिषद
नग्न मालूम पड़ती है। मनोवैज्ञानिक...बिलकुल ट्रेक पर है आदमी, जल्दी रस्ता निकल आएगा। तीसरा दिया। कहा, क्या मालूम पड़ता है? नसरुद्दीन ने कहा, क्या कहना पड़ेगा? यह स्त्री कुछ न कुछ गड़बड़ काम कर रही है-समथिंग नैस्टी। ___ मनोवैज्ञानिक ने कहा कि तुम्हारी बीमारी पकड़ में आ गई। तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है, वह मुझे पता चल गया। नसरुद्दीन ने कहा, मेरे दिमाग में? ये चित्र तुम्हारे हैं कि मेरे? ये तुमने बनाए हैं कि मैंने? तुम्हारा दिमाग खराब मालूम पड़ता है। नसरुद्दीन ने कहा कि आज तो मैं जल्दी में हूं, कल फिर आऊंगा। लेकिन, कैन यू लेंड मी दीज़ पिक्चर्स फार ए डे? क्या एक दिन के लिए दे सकते हो उधार? जरा रात को देखेंगे और मजा लेंगे।
आकाश में देखे गए हाथियों जैसा है यह संसार। खाली बादल हैं, स्याही के धब्बे, उनमें जो हम देखना चाहें, वह देख लेते हैं। जो हमें दिखाई पड़ता है, वह है नहीं। वह हम देखते हैं। वह हम अपने ही भीतर से फैलाते हैं। वह हमारे ही मन का फैलाव है। और हम पर ही निर्भर है सब। ___ जिस जगत में हम रहते हैं, वह हमारी सृष्टि है, हमारा सृजन है। और हमें उस जगत का तो कोई पता ही नहीं है, जो हमारे मन के पार, हम से भिन्न, हमारे सृजन के बाहर है। वह तो केवल उसे ही पता चलता है, जिसका मन मिट जाता है। क्योंकि जब तक मन है, तब तक प्रोजेक्टर है। वह भीतर से काम करता रहता है।
एक व्यक्ति के चेहरे में आप सौंदर्य देख लेते हैं। आपको पता है, उसी के चेहरे में कुरूपता देखने वाले लोग मौजूद हैं? एक व्यक्ति में आप सब गुण देख लेते हैं। और आपको पता है कि उसके भी दुश्मन हैं और सब दुर्गुण देखने वाले मौजूद हैं? जो आप देख रहे हैं, वह व्यक्ति तो सिर्फ निमित्त है, . आकाश के बादलों जैसा, जो आप देख रहे हैं वह आपका फैलाव है। फिर रोज दुख होता है, क्योंकि वह व्यक्ति जैसा है वैसा ही है। आपके फैलाव के अनुसार जी नहीं सकता। अब आपने कुछ मान रखा है, वह आज नहीं कल टूटेगा। फिर झंझट शुरू होगी। आप एक्सपेक्टेशंस बना लेते हैं।
एक आदमी मुस्कुराकर मेरे पास आता है, प्रशंसा की बातें कहता है। मैं सोचता हूं, बहुत भला आदमी है। फिर रात को वह मेरे पैसे लेकर नदारद हो जाता है। मैं सोचता हूं कि एक भला आदमी और ऐसा काम क्यों किया? अब उसकी मुस्कुराहट, उसकी प्रशंसा पर मैंने कुछ आरोपित कर लिया। वह आरोपित की अपेक्षा शुरू हो गई। उस आदमी से मैं अपेक्षा नहीं करता कि वह चोरी करेगा। चोरी वह आदमी करेगा, वह उस आदमी के भीतर की बात है कि वह क्या करेगा। बादल में आपने हाथी देखा, कितनी देर तक वह हाथी रहेगा, कहना मुश्किल है। थोड़ी देर में बादल बिखरेगा, कुछ और बन जाएगा। तब आप रोते-चिल्लाते नहीं रहेंगे कि मैंने तो हाथी देखा था, यह बहुत धोखा हो गया।
सब हमारी अपेक्षाएं हमें धोखे में डाल देती हैं। क्योंकि वह आदमी तो वही है, जो है। हम कुछ सोच लेते हैं। और फिर हम परेशानी में पड़ते हैं, क्योंकि वैसा वह सिद्ध नहीं होता। इसलिए जब तक मन है, तब तक हमें गलत आदमी ही मिलते रहेंगे, क्योंकि हम गलत देखते ही रहेंगे। हम वह देखते रहेंगे, जो वहां है ही नहीं।
यह जो हम जाल फैला लेते हैं चित्त का, यही हमारा स्वप्नवत संसार है। मन संसार है। मन के पार
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