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________________ निर्वाण उपनिषद से भरे हुए जगत में कोई चीज नित्य नहीं हो सकती, ऐब्सल्यूट नहीं हो सकती। सब बदलता हुआ है। आइंस्टीन कहता था कि अगर हम सारे के सारे लोग एक साथ लंबे हो जाएं, सारी चीजें एक साथ लंबी हो जाएं, मैं छह फीट का हूं, मैं जिस वृक्ष के पास खड़ा हूं, वह साठ फीट का है, मैं बारह फीट का हो जाऊं, वृक्ष एक सौ बीस फीट का हो जाए, पहाड़ भी दुगना लंबा हो जाए, आसपास जितना है, वह सब एक क्षण में दुगना हो जाए किसी जादू के असर से, तो किसी को भी पता नहीं चलेगा कि कुछ भी बदलाहट हो गई। क्योंकि अनुपात थिर रहेगा, प्रपोर्शन पुराना रहेगा। पता ही नहीं चलेगा। पता इसलिए चल सकता है कि मैं लंबा हो जाऊं और वृक्ष उतना ही रहे, पहाड़ उतना ही रहे, पास में खड़ा हुआ आदमी उतना ही रहे। तो पता चलेगा, नहीं तो पता नहीं चलेगा। पता ही चलता है इसलिए कि अनुपात डांवाडोल हो जाता है, नहीं तो पता नहीं चलता। हमारे बीच जो लोग जाग जाते हैं विवेक में, उनको पता चलता है। बड़ी अड़चन हो जाती है उन्हें कि ये सारे लोग सोए हुए चल रहे हैं, सपने में जी रहे हैं। मगर उन्हें पता चलता है, हमें पता नहीं चलता। हम सब सपने में एक से ही जी रहे हैं। इसलिए हमारे बीच जब भी कोई व्यक्ति जागता है, तो हमें बड़ी बेचैनी पैदा होती है। हम घसीट-घसीटकर उसको भी सुलाने की पूरी कोशिश करते हैं कि तुम.भी सो जाओ। हम उसे भी समझाते हैं कि सपने बड़े मधुर हैं, बड़े मीठे हैं। बुद्ध घर छोड़कर गए, तो अपने पिता का राज्य छोड़कर चले गए। क्योंकि पिता के राज्य में उपद्रव होगा, आज नहीं कल पीछा किया जाएगा। तो वे पड़ोसी के राज्य में चले गए। पड़ोसी सम्राट को पता चला कि मित्र का बेटा संन्यासी हो गया है, उसे बड़ी पीड़ा हुई। वह खोज-पता लगाकर आया। वह बुद्ध के पास बैठा और उसने कहा कि देखो, अभी तुम जवान हो, अभी तुम्हें जीवन का अनुभव नहीं। यह तुम क्या पागलपन कर रहे हो? कोई फिक्र नहीं, अगर पिता से नाराज हो या कोई और अड़चन है, मेरे घर चलो। अपनी बेटी से तुम्हारा विवाह किए देता हूं और आधा राज्य दिए देता हूं। बद्ध ने कहा, मैं यही सोचकर वहां से भागा कि कोई मेरा पीछा न करे। आप यहां भी मौजद हैं। जैसा कि कहना चाहिए था, उस वृद्ध को, उसने कहा, तु अभी नासमझ है, अभी तुझे जिंदगी का कोई पता नहीं है। वापस लौट चल। बुद्ध जहां-जहां गए, वहीं पीछा किया गया। कोई न कोई समझदार जरूर आ जाता और कहता कि चलो, सो जाओ। हम इंतजाम किए देते हैं। जब भी कोई आदमी जागने की दिशा में चलेगा, चारों तरफ से पंजे पड़ जाएंगे, आक्टोपस की तरह। सब तरफ से हाथ उसको पकड़ने लगेंगे कि सो जाओ। सब तरह के प्रलोभन इकट्ठे हो जाएंगे, वे कहेंगे, सो जाओ। क्योंकि जब भी कोई आदमी हमारे बीच जागता है, तो हमें बड़ी बेचैनी होती है, क्योंकि वह नई वैल्यूज, नए मूल्य हमारे बीच उतारना शुरू कर देता है। वह कहता है, तुम सपने में हो। वह कहता है, तुम सोए हो। वह कहता है, तुम होश में नहीं हो। वह कहता है, यह अनित्य है संसार। यह सब खो जाने वाला है। यह सब मिट जाने वाला है। अब कोई आदमी, जो मकान बना रहा है, उससे कहो अनित्य है यह संसार, तो उसकी जान निकाले ले रहे हो। वह मानने को राजी नहीं हो सकता कि जो इतने खंडहर पड़े हैं, ऐसा ही उसका मकान भी 7 146
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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