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________________ स्वप्न-सर्जक मन का विसर्जन और नित्य सत्य की उपलब्धि वह आदमी तो हैरान हुआ, क्योंकि साधारण सा सवाल था सुबह का कि कैसे हैं! कहना था, अच्छा हूं। लेकिन नसरुद्दीन ने कहा, किसकी तुलना में? क्योंकि गांव में मुझसे भी ज्यादा अच्छी हालत में लोग हैं, मुझसे भी बुरी हालत में लोग हैं, पूछ किसकी तुलना में रहे हो? . सारे वक्तव्य इस जगत में तुलनात्मक हैं, रिलेटिव हैं, सापेक्ष हैं। जब हम कहते हैं, यह आदमी मर गया, तब भी असल में हमें पूछना चाहिए, किस हिसाब से? क्योंकि मुर्दे के भी नाखून बढ़ते हैं और बाल बड़े होते हैं। कब्र में रखे हुए मुर्दे के नाखून बड़े हो जाते हैं और बाल बड़े हो जाते हैं। सिर घुटाकर रखो, तो फिर बाल बढ़ जाते हैं। अगर बाल बढ़ने को कोई जीवन का लक्षण समझता हो, तो यह आदमी मरा नहीं है अभी। अगर आप सोचते हों कि इसके शरीर में प्राण हो, तो मरा हुआ नहीं है। ___ एक-एक आदमी के शरीर में कोई सात करोड़ जीवाणु हैं। जब आप मरते हैं, तो जीवाणुओं की संख्या एकदम बढ़ जाती है। अगर उनके प्राण का हम हिसाब रखें, तो यह आदमी अब और भी ज्यादा जीवन से भरा है, जितना पहले था। पहले सात ही करोड़ थे, मरते से ही सड़ना शुरू होता है, जीवाणु और बढ़ जाते हैं। अगर हम उन जीवाणुओं से पूछे कि तुम जिस बस्ती में रहते थे, वह मर गई? तो वे कहेंगे, क्या कह रहे हैं! बढ़ गई, मर नहीं गई। संख्या बढ़ रही है जीवन की। उन कोष्ठों को, जो आपके भीतर हैं, उनको आपका तो पता ही नहीं है। . गुरजिएफ एक बहुत अदभुत बात कहा करता था। वह कहता था, यह हो सकता है कि जैसे हमारे शरीर में सात करोड़ कोष्ठ, जीवित कोष्ठ बसे हुए हैं और उन्हें हमारा कोई पता नहीं, ऐसा हो सकता है कि मनुष्य का पूरा समाज भी किसी और एक वृहत्तर शरीर में सिर्फ एक जीव-कोष्ठ की तरह बसा हो और हमें उसका कोई पता नहीं। इसकी संभावना हो सकती है। .. गुरजिएफ यह भी कहता था और वह बहुत समझदार लोगों में एक था इन पचास सालों में वह यह भी कहता था, यह भी हो सकता है कि जैसे जीव-कोष्ठ हमारे भीतर बसा है, तो वी आर जस्ट फूड टु दोज सेल्स, वह जो हमारे भीतर कोष्ठ हैं, उनके लिए हम भोजन से ज्यादा नहीं हैं। हम उनके लिए क्या हैं, सिर्फ भोजन। वे हमारा भोजन करते हैं और जीते हैं। गुरजिएफ कहता था, यह हो सकता है कि हम इस पृथ्वी पर जहां बसे हुए हैं और इस पृथ्वी को हम भोजन से ज्यादा तो कुछ समझते नहीं हो सकता है, हम सिर्फ एक पृथ्वी की बड़ी काया के शरीर में जीव-कोष्ठ हों और हमें इस पृथ्वी की आत्मा का कोई भी पता न हो, और हमें इस पृथ्वी के व्यक्तित्व का और चेतना का कोई भी पता न हो। गुरजिएफ यह भी कहता था कि हर चीज किसी के लिए भोजन होती है, तो आदमी के साथ अपवाद क्यों हो? हर चीज किसी के लिए भोजन है, आदमी भी किसी का भोजन होना चाहिए। तो वह तो बहुत मजेदार बात कहता था। वह कहता था, आदमी चांद का भोजन है। इधर जब आदमी मरता है, तो हम समझते हैं मर गया, सिर्फ चांद उसका भोजन कर लेता है। वह तो मजाक में कहता था। लेकिन यह बात सच है, हो सकती है, क्योंकि इस जगत में सभी चीज भोजन है। एक फल लगता है वृक्ष पर, आपका भोजन बन जाता है। एक जानवर दूसरे जानवर का भोजन कर लेता है। तो आदमी किसी और वृहत्तर जीवन का भोजन तो नहीं है? किस हिसाब से हम कह रहे हैं, इस पर सब निर्भर करेगा। सारे वक्तव्य सापेक्ष हैं। इस सापेक्षता 1457
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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