SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निर्वाण उपनिषद संकल्प, थोड़ा समर्पण; और उस बीज से जीवन-अंकुर फूटना शुरू हो जाता है। और जिस व्यक्ति के भीतर ध्यान का अंकुर जन्म गया, बस वही कह सकता है कि जीवन में कोई सार्थकता पाई, अन्यथा जीवन सिर्फ अपने को व्यर्थ गंवाने से ज्यादा और कुछ भी नहीं है। तो मन और वाणी के जो पार है, वह ध्यान से जाना जाता है। आज इतना ही। अब हम ध्यान में उतरेंगे। वह मन और वाणी के जो पार है, उसे जानने को चलेंगे। दो-तीन सूचनाएं, फिर आप उठे। ___ बहुत ठीक प्रयोग आप कर रहे हैं—शायद दस-पांच मित्रों को छोड़कर। लेकिन वे जो दस-पांच हैं, वे भी व्यर्थ समय न चूकें। बड़े मजे की बात तो यह है कि आ ही गए हैं, खड़े ही हैं, समय जा ही रहा है, घंटा बीत ही जाएगा-चाहे ध्यान करिएगा कि नहीं करिएगा। जब आ ही गए हैं, खड़े ही हैं और ध्यान चल ही रहा है, तो आप क्यों किनारे पर खड़े रह जाते हैं? जब गंगा इतनी पास बहती हो, तो आप क्यों प्यासे रह जाते हैं? तो कोई भी वंचित न रहे, कोई भी खड़ा न रहे। प्रयोग करके ही देख लें-न मिलेगा, तो खोएगा तो कुछ भी नहीं। नहीं भी पाया कुछ, तो खोने की कोई बात नहीं है। इसलिए कोई भी खाली न खड़ा रह जाए। फिर भी कोई बिलकुल ही नासमझ हो, आंखें होते हुए आंख न हों, कान होते हुए कान न हों, तो वह दूर पहाड़ी पर हट जाए। वहां बैठे, यहां न खड़ा रहे। दूसरी बात, पहले दो मिनट काफी गहरी श्वास ले लेनी है, ताकि शरीर से शक्ति जग जाए। तीसरी बात, अपलक आंख-पलक झुकानी नहीं है-मुझे देखते रहना है। चौथी बात, जिन लोगों को बहुत तीव्रता से करना है, वे आगे होंगे। और उसी मात्रा में पीछे होते चले जाएंगे। जिनको खड़े रहकर धीमे-धीमे करना है, वे बिलकुल पीछे की कतार में होंगे। फिर यहां मेरे पास भी जो लोग खडे हैं. वे भी थोडी जगह बनाकर खडे होंगे तो कट सकेंगे नाच सकेंगे। और आखिरी बात. जब मैं खडा हो जाऊं और आपको इशारा शरू करूं. तो आपकोह की आवाज. हू की चोट जोर से करनी है और नाचना है। जब मैं हाथ नीचे से ऊपर की तरफ उठाऊं, तो वह इशारा है कि आप अपनी पूरी शक्ति लगा दें। और जब मैं ऊपर ले जाऊं, तो आपमें जितनी ताकत हो उतनी लगा दें-आवाज, नाच...।। और कभी-कभी बीच में जब हाथ मैं उलटे कर लूं और ऊपर से नीचे की तरफ लाऊं, तब आप और भी जितनी शक्ति हो, वह इकट्ठी करके लगा दें। क्योंकि तब मैं आशा करता हूं कि अगर आपने पूरी शक्ति लगाई. तो आपमें से बहतों के ऊपर शक्तिपात हो सकेगा। परमात्मा का ऊपर से स्पर्श मिल सकेगा। V 136
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy