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अनित्यं ज्जगद्यज्जनित स्वप्न जगभ्रगजादि तुल्यम् तथा देहादि संघातम् मोह गणजाल कलितम् । तद्रज्जुस्वप्नवत् कल्पितम् ।
विष्णु विध्यादि शताभिधान लक्ष्यम् । अंकुश मार्गः ।
जगत अनित्य है, उसमें जिसने जन्म लिया है, वह स्वप्न के संसार जैसा और आकाश के हाथी जैसा मिथ्या है। वैसे ही यह देह आदि समुदाय मोह के गुणों से युक्त है। यह सब रस्सी में भ्रांति से कल्पित किए गए सर्प के समान मिथ्या है।
विष्णु, ब्रह्मा आदि सैकड़ों नाम वाला ब्रह्म ही लक्ष्य है। अंकुश ही मार्ग है।