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अखंड जागरण से प्राप्त-परमानंदी तुरीयावस्था ।
है कि आत्मा मन के लिए अगोचर है, अविषय है। नाट एन आब्जेक्ट फार द माइंड-मन के लिए विषय नहीं है। ___ इसे हम ऐसा समझें, तो हमें आसानी पड़ेगी। आंख देख लेती है, लेकिन सुन नहीं पाती। अगर कोई संगीत सनने आंख लेकर पहंच जाए, तो वह कहे, आंख मेरी बिलकल दुरुस्त है, चश्मा भी नहीं लगता, तो यह संगीत सुनाई क्यों नहीं पड़ रहा है? लेकिन आंख के लिए सुनना अविषय है। नाट एन आब्जेक्ट फार द आई। वह आंख का विषय नहीं है, उसमें आंख का कोई कसूर नहीं है। आंख के पास पकड़ने का उपाय ही नहीं है ध्वनि को। आंख पकड़ती है रंग को, रूप को, आकार को, प्रकाश को-साउंड को नहीं, ध्वनि को नहीं। उसके पास यंत्र नहीं है। आंख का कोई कसूर नहीं है। अविषय। ऐसे ही मन पकड़ता है पदार्थ को। चैतन्य उसके लिए अविषय है।
इसलिए ऋषि एक तो कारण यह है कि कहते हैं कि मन का अविषय है. अगोचर है। मन को नहीं दिखाई पड़ेगा। इसलिए जो मन से खोजने चला, वह गलत साधन लेकर खोजने चला है। और अगर आत्मा नहीं मिलती, तो इससे आत्मा का न होना सिद्ध नहीं होता, इससे सिर्फ इतना ही सिद्ध होता है कि आप जो साधन लेकर चले थे, वह असंगत था, इररेलेवेंट था। उसका कोई जोड़ ही नहीं बनता था। उससे कोई संबंध ही नहीं जुड़ता था। उसके लिए कुछ और ही रास्ते खोजने पड़ेंगे।
ध्यान वही रास्ता है। जो मन नहीं करता, वह ध्यान कर पाता है। जो मन के लिए अविषय है, वह ध्यान के लिए विषय है। ध्यान उस नई शक्ति को भीतर जगाना है, जो मन से अतिरिक्त है—न आंख की है, न कान की है, न नाक की है, न हाथ की है, न शरीर की है, न मन की है। इन सब से अलग और भिन्न है। उस ध्यान से।
अगर हम ऐसा समझें तो आसानी हो जाएगी।
मैंने कहा, एक दर्पण लगा है। उसके सामने जो पड़ता है, वह दिखाई पड़ जाता है। हम दर्पण के पीछे एक और दर्पण लटका देते हैं, तो पीछे का जो है, वह भी दिखाई पड़ने लगता है। मन एक दर्पण है, पदार्थ को पकड़ने के लिए। ध्यान भी एक दर्पण है, परमात्मा को पकड़ने के लिए। ध्यान के बिना नहीं है। गोचर नहीं हो पाएगा। ___और ऋषि इसलिए भी कहता है कि मन और वाणी का अविषय है, क्योंकि मन सोच सकता, जान नहीं सकता–इट कैन थिंक, बट इट कैन नाट नो। मन का अर्थ ही होता है, मनन की क्षमता—द कैपेसिटी टु थिंक। इसीलिए उसको मन कहते हैं। और इसीलिए मनुष्य को मनुष्य कहते हैं, वह जो सोच सकता। ___ मन का अर्थ है: सोचने की क्षमता, विचारने की क्षमता। लेकिन ज्ञान और ही बात है। सच तो यह है कि जहां हमें ज्ञान नहीं होता, वहां मन सब्स्टीट्यूट, परिपूरक का काम करता है। जहां ज्ञान नहीं होता, वहां हम सोचकर काम चलाते हैं। जहां ज्ञान होता है, वहां सोचकर काम करने की कोई जरूरत ही नहीं रह जाती। कि रह जाती है? ___ अंधा आदमी, कमरे के बाहर जाना है, तो वह पूछता है कि रास्ता कहां है? सोचता है, रास्ता कहां है? पता लगाता है, रास्ता कहां है? आंख वाला आदमी, जब उसे निकलना होता है, न सोचता...खयाल करना, सोचता भी नहीं कि रास्ता कहां है। सोचता भी नहीं कि दरवाजा कहां है। पूछने
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