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________________ निर्वाण उपनिषद । मैं यह कहने को नहीं कह रहा हूं। फील इट–बायां उठ रहा है, तो भीतर अनुभव करें, बायां उठ रहा है। यह मुझे तो कहना पड़ रहा है, आपको कहने की जरूरत नहीं है। जब बायां उठे, तो आप सिर्फ जानें कि बायां उठा। जब दायां उठे तो जानें कि दायां उठा। दस-पांच कदम में ही आप पाएंगे कि हजार दफे भूल हो जाती है। एक पैर उठता है, दूसरा भूल ही जाता है। खयाल ही नहीं रहता कि दायां कब उठ गया। तब आपको पता चलेगा कि कितनी मूर्छा है। ____ अपने चलते हुए पैर का भी पता नहीं है, तो और जिंदगी के और रास्तों का क्या पता होगा? क्षणभर को होश नहीं रख पाता हूं श्वास का, तो क्रोध का कैसे होश रख पाऊंगा! श्वास जैसी इनोसेंट क्रिया, जिसमें किसी का कुछ बनता-बिगड़ता नहीं, किसी से कुछ लेना-देना नहीं-निर्दोष बिलकुल, निजी बिलकुल-उसमें भी नहीं होश रह पाता। तो मैं कसमें लेता हूं कि अब क्रोध नहीं करूंगा, कैसे चलेंगी ये कसमें? कसम एक तरफ पड़ी रह जाएगी जब क्रोध आएगा, होश का पता ही नहीं रहेगा। क्रोध हो जाएगा, तब पीछे से पता चलेगा। और पीछे से तो दुनिया में सभी बुद्धिमान होते हैं। पीछे से दुनिया में सभी बुद्धिमान होते हैं। ____ मुल्ला नसरुद्दीन कहता था, एक दिन लौट रहा था किसी सभा में भाषण करके। पत्नी से कहने लगा कि तीसरा भाषण सबसे जोरदार हुआ। पत्नी ने कहा, तीसरा भाषण? तुम्हारा अकेला तो भाषण ही था! मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा, मेरा ही तीसरा भाषण। उसकी पत्नी ने कहा, लेकिन तीसरा! एक कुल जमा तुमने भाषण दिया। मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा, पहले मेरी पूरी बात सुन लो। एक भाषण तो वह है, जो मैं घर से तैयार करके चला था कि दूंगा। एक वह है, जो मैंने दिया। और एक वह है, जो मैं अब सोच रहा हूं कि दिया होता। यह तीसरा, द बेस्ट, इसका कोई मुकाबला ही नहीं। बेहोश आदमी ऐसा ही चल रहा है। जो कहना चाहता था, वह कहा नहीं। जो कहा, वह कहना नहीं चाहता था। जो कहना चाहता था, वह अपने भीतर कह रहा है। यह सब चल रहा है, बेहोशी के कारण। होश को जगाना हो, विवेक को जगाना हो, इस लाभ को पाना हो त्रिगुण के पार जाने का...त्रिगुण के पार जाए बिना अमृत की उपलब्धि नहीं है। क्योंकि तीन गुणों के भीतर तो मृत्यु ही मृत्यु है, चौथे में अमृत है। तो इसको साधना पड़े-उठते-बैठते, चलते-सोते साधना पड़े। आप कितनी दफे सो चुके हैं जिंदगी में! आदमी साठ साल जीता है, तो कम से कम बीस साल तो सोता है। आठ घंटे रोज सोए, तो साठ साल में बीस साल सोने में गुजर जाते हैं। बीस साल! अगर आप साठ साल के हैं, तो आप बीस साल सो चुके हैं। लेकिन कभी आपने नींद को आते देखा? कभी नींद को जाते देखा? कभी आपको पता है, बीस साल सोते हो गए, आपको यह भी पता नहीं कि नींद किस क्षण में आती है और कैसी होती है। यह भी पता नहीं है, नींद कब चली जाती है। अपनी ही नींद, लेकिन होश बिलकुल नहीं! अपना ही जागरण, लेकिन होश बिलकुल नहीं! तो प्रयोग करें। रात सो रहे हैं, बिस्तर पर पड़े हैं। होश रखें, कब नींद आ जाती है। जागते-जागते देखते रहें, कब नींद का धुआं उतरता है। कब नींद का अंधेरा भीतर छा जाता है। कब हृदय की धड़कनें शिथिल हो जाती हैं। कब श्वास तंद्रिल हो जाती है। कब भीतर सपने जगने लगते हैं। देखते रहें। महीनों तक तो कोई पता नहीं चलेगा। सुबह ही आपको पता चलेगा कि अरे, नींद आ गई! लेकिन V 130
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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