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अखंड जागरण से प्राप्त-परमानंदी तुरीयावस्था
___ 'भारतीय कहते रहे हैं, तीन गुण हैं-रज, तम, सत्व। उन तीन से मिलकर यह जगत बना। क्रिश्चियन्स कहते हैं, ट्रिनिटी है, चैत है जगत-गाड द फादर, होली घोस्ट एंड जीसस क्राइस्ट द सन। पिता परमात्मा और पवित्र आत्मा-दो और पुत्र क्राइस्ट-तीन, इन तीन से मिलकर सारा जीवन है। ये नाम अलग हैं। वैज्ञानिक कहते हैं कि जितना हम अस्तित्व में प्रवेश करते हैं, उतना ही पता चलता है कि तीन से मिलकर सारा अस्तित्व है। उनके नाम अलग हैं, वैज्ञानिक हैं। वे कहते हैं, इलेक्ट्रान, प्रोटान, न्यूट्रान। उन तीन से मिलकर सारा जगत है।
लेकिन एक बहुत मजे की बात है कि चार कोई नहीं कहता, दो भी कोई नहीं कहता। वे क्या परिभाषाएं करते हैं, क्या नाम देते हैं, यह दूसरी बात है। युग बदलते हैं, शब्द बदलते हैं, परिभाषाएं बदल जाती हैं, लेकिन यह तीन की संख्या कुछ महत्वपूर्ण मालूम पड़ती है। यह थिर मालूम पड़ती है।
जगत एक त्रैत है, तीन से मिलकर बना है। लेकिन विज्ञान कहता है, बस इस तीन में सब समाप्त है। यहां उसकी भूल है। अभी उसे चौथे का पता नहीं है। क्योंकि इन तीन को जो जानता है, वह तीसरा नहीं हो सकता, तीन में नहीं हो सकता। इन तीन को जो जानता है और पहचानता है, वह चौथा ही हो सकता है—द फोर्थ।
हिंदू बहुत अदभुत रहे हैं शब्दों की खोज में। पुरानी कौम है और उसने बहुत अनुभव किए हैं और • बहुत सी बातें खोजी हैं। तो हमने जो चौथे के लिए नाम रखा है, वह नाम नहीं रखा, क्योंकि नाम रखने की कोई जरूरत नहीं, क्योंकि पांचवां है नहीं। इसलिए चौथी अवस्था को हमने कहा, तुरीय। तुरीय का अर्थ होता है सिम्पली द फोर्थ-चौथी। उसका कोई नाम नहीं है। बस चौथी से काम चल जाएगा, उसके आगे कोई बात ही नहीं है।
अभी रूस के एक बहुत बड़े गणितज्ञ ने एक किताब लिखी है, पी.डी.आस्पेंस्की ने, द फोर्थ वे-चौथा मार्ग। और आस्पेंस्की करीब-करीब घूम-घूमकर वहीं आ गया है, जहां तुरीय की धारणा आती है।
तीन से काम नहीं चलेगा, क्योंकि तीन से जो निर्मित है उसको जानने वाला एक चौथा भी है, जो अलग मालूम पड़ता है। पदार्थ तीन से निर्मित है, यह सत्य है; जगत तीन से निर्मित है, यह सत्य है; लेकिन एक चौथा भी है जो जगत के भीतर भी होकर जगत के बाहर है-चेतना है, कांशसनेस है, बोध है-वह चौथा है। जो इस चौथे को जान लेता-निर्गुण गुणत्रयम्-वह तीन गुणों के पार हो जाता है। . द फोर्थ मस्ट बी नोन। उस चौथे को जाने बिना तीन के बाहर नहीं होता आदमी। और जब तक चौथे को नहीं जानता, तब तक तीन में से किसी एक के साथ अपना संबंध जोड़कर समझता है, यही मैं हूं। जन्मों-जन्मों तक यह भूल चलती चली जाती है। तीन में से हम किसी से अपने को जोड़ लेते हैं और कहते हैं, यही मैं हूं। और उसका हमें पता ही नहीं-जो कह रहा है, जो देख रहा है, जो जान रहा है-उसका हमें कोई पता नहीं। ___ पता इसलिए नहीं चलता, जैसे कि किसी दर्पण के सामने सदा ही भीड़ गुजरती हो, सदा ही। दर्पण बाजार में लगा हो, एक पान वाले की दुकान पर लगा हो, भीड़ दिनभर गुजरती हो। कोई बैठा हुआ देखता हो, दर्पण कभी खाली न दिखे-सदा भरा रहे, सदा भरा रहे, सदा भरा रहे। उस आदमी ने कभी
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