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अखंड जागरण से प्राप्त - परमानंदी तुरीयावस्था
वे ब्रह्म में ही विचरण करते हैं और ऐसे वे परम- आनंदी हैं।
अब जिसका ब्रह्म में विचरण हो और जिसकी निद्रा भी भगवत- चैतन्य में हो, वहां दुख कैसा ! वहां दुख का प्रवेश कैसा !
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पर एक बात समझ लें। वहां दुख भी नहीं होता और सुख भी नहीं होता । अन्यथा हमें भूल होती है। सदा । जब इस सूत्र को हम पढ़ेंगे या ऐसे किसी भी सूत्र को पढ़ेंगे, तो हमें लगता है कि वहां सुख ही सुख होगा। लेकिन हमारा दुख भी वहां नहीं होता, हमारा सुख भी नहीं होता वहां, क्योंकि हम ही वहां नहीं होते। हमने जिसे दुख जाना है, वह तो होता ही नहीं; हमने जिसे सुख जाना है, वह भी नहीं होता। वहां दोनों ही शून्य हो जाते हैं। और तब जो प्रकट होता है, उसका नाम आनंद है।
आनंद सुख नहीं है। इसे ठीक से समझ लें। आनंद सुख नहीं है। आनंद सुख और दुख दोनों का अभाव है। असल में दुख की भी अपनी पीड़ा है और सुख की भी अपनी पीड़ा है। दुख तो दुख है ही, जो जानते हैं, वे कहते हैं, सुख भी दुख का ही एक ढंग है। दुख तो दुख है, सुख प्रीतिकर दुख है, जिसे हम चाहते हैं । बस, इतना ही फर्क है।
दुख हो जाता है। तो वह भी सुख
इसलिए कोई भी सुख किसी भी दिन दुख हो जाता है । हमारी चाह हट जाती है, और कोई भी दुख किसी भी दिन सुख बन सकता है। अगर हमारी चाह उससे जुड़ जाए, बन सकता है।
सुख और दुख घटनाओं में नहीं होते, परिस्थितियों में नहीं होते, वस्तुओं में नहीं होते, सुख और दुख हमारे चाहने और न चाहने में होते हैं। जिसे हम चाहते हैं, वह सुख मालूम पड़ता है; जिसे हम नहीं चाहते, वह दुख मालूम पड़ता है। लेकिन कोई बाधा नहीं है कि जिसे हम अभी चाहते हैं, क्षणभर बाद चाहें, तो न चाह सकें। क्षणभर बाद नहीं चाह सकते हैं। ऐसी भी कोई बात नहीं है कि जिसे आज हम नहीं चाहते हैं, कल भी उसे नहीं चाहेंगे।
मुल्ला नसरुद्दीन की सास मर गई थी, मदर इन ला। तो बड़ा प्रसन्न था, बड़ा आनंदित मालूम हो रहा था। उसकी पत्नी ने कहा, कुछ तो शर्म खाओ। मेरी मां मर गई, तुम इतने प्रसन्न हो रहे हो ! नसरुद्दीन ने कहा, इसीलिए तो प्रसन्न हो रहा हूं। उसकी पत्नी ने कहा कि कभी तो कुछ मेरी मां में तुमने अच्छा देखा होता ! और अब तो वह मर भी गई। कुछ एकाध गुण तो कभी देखा होता ! नसरुद्दीन ने कहा, गुण हो ही नहीं। मैंने बहुत कोशिश की तेरी बात मानकर देखने की, लेकिन जब हो ही नहीं, तो दिखाई कैसे पड़े ।
उसकी पत्नी दुखी तो थी ही मां के मरने से, छाती पीटकर रोने लगी। और उसने कहा, मेरी मां ने ठीक ही कहा था। शादी के पहले उसने बहुत जिद की थी कि इस आदमी से शादी मत करो। नसरुद्दीन ने कहा, क्या कहती है? तेरी मां ने शादी से रोका था ? काश, मुझे पता होता तो मैं उसे इतना बुरा कभी भी नहीं समझता। बेचारी ! अगर मुझे पता होता, तो उसे बचाने की कोशिश करता। इतनी भली स्त्री थी, यह तो मुझे पता ही नहीं था ।
अभी मर गई थी सास, तो सुख था, अब दुख हो गया।
वह
चाह है भीतर, जरा सा संबंध कहीं से भी शिथिल कर ले, जोड़ ले, तो सब बदल जाता है। यह जो हमारा मन है, जिससे जुड़ जाता है, वहां सुख मालूम होता है। सुख एक भ्रांति है, जो उसके साथ
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