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________________ अनंत धैर्य, अचुनाव जीवन और परात्पर की अभीप्सा बह हा यात्री से कहा कि तुम जरा बाहर बैठो, मैं गिनकर आता हूं। गिने, बड़ा हैरान हुआ। हुआ ऐसा कि उसके लड़के को भी यह देखकर कि बाप रोज कंकड़ डालता है मटकी में, लड़का भी कंकड़ ला-लाकर डालता चला गया। बाहर जाकर उसने कहा कि माफ करना भाई, पैंतालीस दिन हो गए हैं। उस आदमी ने कहा, पैंतालीस! महीने में पैंतालीस दिन होते हैं? नसरुद्दीन ने कहा, यह तो मैं बहुत कम करके बता रहा हूं। पत्थर तो डेढ़ सौ हैं। यह तो मैंने काफी कम करके बताए। विचार भी ऐसे ही पत्थरों की तरह भीतर इकट्ठे होते चले जाते हैं। जिंदगी बहत तरल है. विचार स हैं। फिर आखिर में उन्हीं कंकड़-पत्थरों को गिनकर हम जिंदगी का हिसाब रखते हैं। और जैसा नसरुद्दीन के लड़के ने बहुत पत्थर डाल दिए, विचार सब आपके नहीं होते, आपके तो थोड़े ही होते हैं, बाकी तो दूसरे आप में डाल देते हैं। आखिर में आपके घड़े में जो पत्थर निकलते हैं, वे सब आपके भी नहीं होते हैं। सब डाल रहे हैं आपके घड़े में पत्थर। आखिर में गिनती आप करेंगे, समझेंगे अपने हैं। बाप बेटे के में डाल रहा है, पत्नी पति की खोपड़ी में डाल रही है, शिक्षक विद्यार्थी के, गुरु शिष्यों के। वे कंकड़-पत्थर इकट्ठे हो जाएंगे। उनका नाम विचार नहीं है। विचारों के संग्रह का नाम विचार नहीं है। विचार एक शक्ति है-सोचने की, देखने की, निष्पक्ष होने की, अपने ही विचार के प्रति तटस्थ 'होने की। वह जो कल का विचार था, वह भी पराया हो गया, उसके प्रति भी पुनर्विचार की जो योग्यता है-संन्यासी का वह दंड है। विचार दंडः। वह सोचकर चलता है। सोचकर चलने का अर्थ, वह जड़ता से और आदत से नहीं जीता। मुल्ला नसरुद्दीन पर एक मुकदमा था। मजिस्ट्रेट ने पूछा कि आपकी उम्र क्या है? उसने कहा, चालीस वर्ष। मजिस्ट्रेट थोड़ा चौंका। उसने कहा कि चार साल पहले भी तुम आए थे, तब भी तुम्हारी उम्र चालीस ही वर्ष थी? मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा कि मैं वचन का पक्का आदमी हूं, जो एक दफे कह दिया, कह दिया। असंगत मैं कभी नहीं होता-नेवर इनकंसिस्टेंट। जब अदालत के सामने कह दिया चालीस साल, तो अब तो बात खतम हो गई। अब तुम कभी भी पूछ लो-सोते से जगाकर-मैं चालीस साल का ही हूं। और तुम्हीं ने तो कसम दिलाई थी, ओथ पर रखा था मुझे कि सत्य ही बोलना। जब बोल चुके सत्य, तो बोल चुके। ऐसी ही जड़ता हमारे भीतर पैदा होती है। सख्त हो जाती है। वह जो पांच साल की उम्र में सोचा था, वह पचास साल की उम्र में भी हमारे काम पड़ता है। आपको खयाल नहीं है कि आप पचास साल की उम्र में भी कभी-कभी पांच साल के बच्चे जैसा व्यवहार करते हैं। ___ एक आदमी के मकान में मैंने आग लगी देखी। उस गांव में मैं मेहमान था। सामने के ही मकान में आग लग गई थी। वह आदमी तो होगा कम से कम पचास-पचपन का, लेकिन आग लगी देखकर वह छोटे बच्चों जैसा कूदने लगा, चिल्लाने लगा और रोने लगा और छाती पीटने लगा। रिग्रेसन, इसको मनोवैज्ञानिक कहते हैं, वह रिग्रेस कर गया। असल में छोटे बच्चे चिल्ला सकते हैं, कूद सकते हैं, अपने को मार सकते हैं, रो सकते हैं, और तो कुछ कर नहीं सकते। अब आग लग गई, तो पचपन साल के आदमी के लिए यह व्यवहार ठीक नहीं है-अगर विचारपूर्ण हो तो। विचार तो 109 V
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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