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अनंत धैर्य, अचुनाव जीवन और परात्पर की अभीप्सा
आए, तो ही उसकी परीक्षा हो सकती है। और एक आए, तो ही चेतना उसको जांच और परख सकती है। एक आए, तो चेतना निर्णय कर सकती है। एक आए, तो तत्काल दिखाई पड़ जाता है, ठीक या गलत। सोचना नहीं पड़ता। लेकिन एक फर्क और समझ लें। ___यहां विचार से अर्थ थाट का भी नहीं है, थिंकिंग का है। एक तो विचार का अर्थ होता है विचार-आब्जेक्टिव। जैसे आपके भीतर एक विचार आया कि भूख लगी है, खाना खाना चाहिए; नींद आ रही है, सो जाना चाहिए। एक विचार आपके भीतर आया। यह विचार का आ जाना जरूरी नहीं है कि आप विचारवान हों कि आपके भीतर थिंकिंग की, विचारणा की क्षमता हो। क्योंकि जब आपको खयाल आया कि भूख लगी, तब विचारवान जो है, वह इसी विचार से नहीं जीएगा। वह इस विचार पर भी विचार करेगा। एक दूसरी पर्त पर खड़े होकर विचार करेगा कि सच में भूख लगी? __ क्योंकि बहुत बार तो भूख सच में नहीं लगती, सिर्फ आदत से लगती है। अगर एक बजे खाना खाते हैं और घड़ी ने एक का घंटा बजा दिया, बस विचार आ जाता है, भूख लगी। वह भूख सच्ची नहीं है। अगर घड़ी ने गलती से, बारह ही बजे हों और एक का घंटा बजा दिया हो, तो भी लग आती है। वह भख सच्ची नहीं है। और अगर आप घंटेभर रुक जाएं तो वह भूख, चूंकि सच्ची नहीं थी, सिर्फ हैबीच्युअल थी, आदतन थी-तो घंटेभर बाद आप पाएंगे, भूख मर गई। अगर भूख सच्ची हो, तो • घंटेभर बाद और बढ़ जानी चाहिए। लेकिन झूठी भूख घंटेभर बाद मर जाएगी, क्योंकि मन तो सिर्फ
यंत्रवत चल रहा है। ___ आपके भीतर जो विचार चलते हैं, वे आदतन हैं। वे आपकी चिंतना का परिणाम नहीं हैं। वे आपके होश से नहीं जन्मे हैं, आपकी पुरानी जड़ आदतों से, आपके अतीत और आपकी स्मृति की पैदाइश हैं-ए मेमोरी प्रोडक्ट। एक आदत का समूह बना हुआ है, वह रोज काम करता रहता है। __आप घर आते हैं, तो आपको सोचना थोड़े ही पड़ता है, विचार थोड़े ही करना पड़ता है कि अब बाएं घूमें, अब दाएं घूमें, अब अपने घर में जाएं, अब घर आ गया तो साइकिल का ब्रेक लगाएं। ऐसा कुछ नहीं करना पड़ता। आपकी खोपड़ी में हजार चीजें चलती रह सकती हैं। हाथ वक्त पर ब्रेक लगाता है, हाथ साइकिल को मोड़ देता है। बाएं घूम जाते हैं, दाएं घूम जाते हैं, घर के पास पहुंच जाते हैं। कभी आपने खयाल किया है कि आपको साइकिल चलाते वक्त सोचना नहीं पड़ता कि अब कहां, अब किस तरफ-आदतन। जरूरी भी है, क्योंकि जिंदगी में अगर सभी चीजें सोचनी पड़ें, तो चलानी बहुत मुश्किल हो जाए, जिंदगी चलानी। अगर रोज-रोज सोचना पड़े कि यह अपना ही घर है! बाहर खड़े होकर अगर विचार करें, तो मुश्किल हो जाए। वैसे लोग भी हैं, जिनको रोज सोचना पड़ता है कि अपना ही घर है।
मुल्ला नसरुद्दीन की जब शादी हुई, तो पत्नी पहले ही दिन बहुत परेशान हो गई। और अपनी पड़ोसन से उसने कहा कि मैं तो बहत दखी हो गई है। उसने कहा, क्या हो गया पहले ही दिन? उसने कहा, जब खाना खाकर मल्ला उठा तो उसने मेरे हाथ में टिप रख दी। तो उसकी पड़ोसन ने कहा, इसमें कोई ऐसी चिंता की बात नहीं। आदतन। बेचारा कुंवारा आदमी; अब तक होटल में ही खाता। पर उसकी पत्नी ने कहा कि नहीं, इससे भी उतनी चिंता न हुई। चिंता तो तब हुई, जब टिप रखने के बाद उसने मुझे चूम भी
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