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________________ अनंत धैर्य, अचुनाव जीवन और परात्पर की अभीप्सा गेट द वन, वन लव्स, एंड द अदर इज़ टू गेट हिम आर हर। एंड द सेकेंड वन इज़ द वर्स। दो ही दुर्भाग्य हैं मनुष्य के जीवन में। एक, जिसे प्रेम करते हैं, उसे न पा सकें। दूसरा, जिसे प्रेम करते हैं, उसे पा सकें। और दूसरा पहले से बदतर है। क्योंकि जिसे हम प्रेम करते हैं, उसे अगर न पा सकें, तो सम्मोहन सदा के लिए बना रह जाता है। ___ मजनू को पता नहीं है असली दुर्भाग्य का। असली दुर्भाग्य तब होता जब लैला मिल जाती। बच गए, असली दुर्भाग्य से बच गए। नहीं मिली, सपना कायम रहा, आशा जगती रही, वासना प्रज्वलित रही। मिल जाती. तो जैसे आग पर पानी पड जाए. ऐसी लैला मजन पर पड जाती। ___ आस्कर वाइल्ड कहता है, और दूसरा पहले से बदतर है। दुर्भाग्य तो दोनों हैं, क्योंकि पहले में भी परेशानी है और दूसरे में भी परेशानी है। लेकिन फिर भी पहला बेहतर है, क्योंकि परेशानी में भी एक रस है, दूसरी परेशानी में रस भी नहीं है। .. लेकिन मन दोनों ही बातें पैदा करता है। पहले कहता है, पाओ। पा लेने पर कहता है, क्या रखा है! यह जो क्या रखा है, यह पहले भी मौजूद था, सिर्फ यह माइनर पार्ट था, अल्पमतीय था, इसलिए दबा पड़ा रहा। यह प्रतीक्षा करेगा कि मेरा भी अवसर तो आएगा। तब मैं ऊपर उठ आऊंगा। और कहूंगा, देखो, पहले ही कहा था, सुना नहीं। अब, अब मुसीबत में पड़ गए हो। ___मन द्वंद्व में जीता है। आप ऐसी कोई चीज नहीं चाह सकते, जिसके प्रति एक दिन अचाह पैदा न हो। आप ऐसा कोई प्रेम नहीं कर सकते, जिसमें आपको किसी दिन घृणा न जन्म जाए। आप ऐसा कोई मित्र नहीं बना सकते, जो किसी दिन शत्रु न हो जाए। जो भी चाहा जाएगा, उसका भ्रम टूटेगा। आप ऐसी कोई चीज पा नहीं सकते, कि एक दिन ऐसा न लगे कि गले में फांसी लग गई। इतनी मेहनत करके जो हम पाते हैं, आखिर में हम पाते हैं, अपनी ही फांसी बना ली। ___वोल्तेयर ने लिखा है कि वक्त था एक, जब मुझे कोई भी नहीं जानता था। तो रास्ते से मैं गुजरता था, तब बहुत पीड़ित होता था कि कोई नमस्कार भी नहीं करता। मन में एक ही आकांक्षा थी कि कब वह दिन आएगा कि लोग मुझे भी जानेंगे और जहां से गुजर जाऊंगा, आंखें मेरी तरफ फिर जाएंगी। वह दिन आ गया-दूसरे नंबर का दुर्भाग्य। वह दिन आ गया। तो वोल्तेयर की हालत यह हो गई कि उसको चोरी से पुलिस को छिपाकर उसके घर पहुंचाना पड़ता था। क्योंकि इतना लोग उसको जानने लगे और इतना मानने लगे कि वह घर कपड़े पहने हुए नहीं पहुंच सकता था। फ्रांस में ऐसा रिवाज है कि जिसे हम आदर करते हैं, उसके कपड़े के टुकड़े का ताबीज...। तो वह घर तक पहुंचते वक्त तक उसके कपड़े फट जाते थे सब। तब उसने कहा, हे भगवान, किसी तरह इनसे बचाओ। इससे तो पहली वाली हालत अच्छी थी। कम से कम सुरक्षित घर तो आ जाते थे। कभी भीड़ में वह लुच भी जाता, हाथ में चोट लग जाती, क्योंकि लोग कपड़े फाड़ते। ___वह दिन फिर आ गया। वक्त बदलने में देर नहीं लगती, जैसा मौसम बदलने में देर नहीं लगती। लोगों के मनों का क्या भरोसा है, क्षण-क्षण में बदल जाते हैं। वह वक्त फिर आ गया, वोल्तेयर बदनाम हो गया। मरते वक्त वोल्तेयर को कब्र पहुंचाने तीन आदमी और–चार प्राणी-क्योंकि एक उसका कुत्ता भी था। तो उसको पहुंचाने चार प्राणी गए थे, तीन उसके मित्र और एक कुत्ता। लोग भूल चुके थे। 105 V
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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