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निर्वाण उपनिषद
महल की तरफ देखूगा ही नहीं। मैं सिर नीचा करके, आंख बंद करके गुजर जाऊंगा। मैं उदासीन नहीं रहा, मैंने पक्ष ले लिया। मेरे भीतर दो पक्ष हो गए। एक, जो मांग करता था कि यह महल मिल जाए,
आर एक जा कहता था कि नहीं, महल से क्या होगा? इन दो पक्षों में मैंने एक पक्ष ले लिया, तो मैं उदासीन न रहा। उदासीन का अर्थ है कि मन का एक कोना कहता है कि महल मिल जाए, मन का एक कोना कहता है कि नहीं लेंगे, क्या रखा है महल में दोनों के प्रति जो दूर खड़ा रहे, तटस्थ रह जाए, न्यूट्रल हो जाए, चुनाव न करे, च्वायसलेस हो। मन की ये दोनों बात चलती रहें, वह द्वंद्व में से कुछ भी न चुने। पीछे खड़ा रह जाए।
उदासीनता अचुनाव है। उदासीनता का अर्थ है कि हम द्वंद्व में कोई भी चुनाव नहीं करते। मन का एक हिस्सा कहता है, क्रोध करो; मन का दूसरा हिस्सा कहता है, क्रोध जहर है। न हम मन के पहले हिस्से की सुनते हैं, न हम दूसरे हिस्से की सुनते हैं। हम दूर खड़े होकर दोनों हिस्सों को देखते हैं। न हम यह किनारा चुनते हैं, न वह किनारा चुनते हैं। हम कुछ चुनते ही नहीं। अचुनाव उदासीनता है। और प्रतिपल मन द्वंद्व खड़े करता है, क्योंकि मन का स्वभाव द्वंद्व है-टु बी डुअल। मन एक से जी नहीं सकता। मन दो होकर ही जीता है। __ आपने मन में कभी कोई ऐसी लहर न पाई होगी जिसकी विपरीत लहर मन तत्काल पैदा नहीं कर देता। जहां आकर्षण होता है, तत्काल विकर्षण वहीं पैदा हो जाता है। मन का एक हिस्सा कहता है, बाएं चलो; दूसरा फौरन कहता है, दाएं चलो। मन सदा ही द्वंद्व खड़ा करता है। मन का स्वभाव द्वंद्व है। अगर मन निर्द्वद्व हो जाए, तो मर जाए; अगर द्वंद्व खो जाए, तो मन समाप्त हो जाए। अगर इस द्वंद्व में से आपने कछ भी
भी चुना, तो आप मन के साथ ही हैं। और जिसको आप चुनेंगे, उसके विपरीत जो है वह मौजूद रहेगा, वह मिटेगा नहीं। वह प्रतीक्षा करेगा आपकी कि ठहरो, थोड़े दिन में ऊब जाओगे उस चुनाव से, फिर मुझे चुन लोगे। यही तो हो रहा है पूरे वक्त।
एक स्त्री को आप प्रेम करते हैं या एक पुरुष को आप प्रेम करते हैं, मन उस वक्त भी द्वंद्व में होता है। मन का एक हिस्सा कहता है कि ठीक है, बहुत प्रीतिकर है, साथ रहें। मन का एक कोने का हिस्सा कहता है कि कहां फंस रहे हो, किस उपद्रव में जा रहे हो, मुसीबत में पड़ोगे! फिर इसमें जो मेजर पार्ट होता है, जो हिस्सा वजनी मालूम पड़ता है उस क्षण वासना को, आप उसका चुनाव कर लेते हैं। दूसरा पड़ा रह जाता है।
थोड़े ही दिन में उस स्त्री या उस पुरुष के साथ रहकर दुख शुरू होते हैं, क्योंकि दूरी में सब आकर्षण है। पास आते ही डिसइल्यूजनमेंट, सारे आकर्षण गिरने शुरू हो जाते हैं। वह स्त्री, जो अप्सरा मालूम पड़ती थी, चार दिन साथ रहने के बाद साधारण स्त्री हो जाती है। बीच का सम्मोहन गिर जाता है। वह जिसके शरीर से सगंध मालम होती थी. उसके शरीर से भी पसीने की दर्गंध आने लगती है। वे जो हाथ ऐसे मालूम पड़ते थे कि छू लेंगे तो शायद फूलों का स्पर्श होगा, अब ऐसा होता है कि ये हाथ भी ठीक हाथ हैं हड्डी और मांस के, और बात सब साधारण हो जाती है। ____ फ्रांस के एक बहुत विचारशील व्यक्ति आस्कर वाइल्ड ने एक बात अपनी डायरी में लिखी है जीवनभर के अनुभवों के बाद। लिखा है, देयर आर टू मिस्फारच्यून्स इन मैन्स लाइफ। वन इज़ नाट टू
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