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अनंत धैर्य, अचुनाव जीवन और परात्पर की अभीप्सा
जाएं, सीच
की गुही को बो देते हैं जमीन में और दिन में चार दफे उखाड़कर देख लेते हैं कि अभी तक, अभी तक अंकुर नहीं निकला? अधैर्य, अंकुर कभी नहीं निकलेगा। यह चार दफे उखाड़ने में अंकुर कभी नहीं निकलेगा। अंकुर निकलने का मौका भी तो नहीं मिल पा रहा है, अवसर भी नहीं मिल पा रहा है। ___ जमीन में बीज को बोकर भूल जाना चाहिए, प्रतीक्षा करनी चाहिए। हां, पानी डालें जरूर, पर अब बीज को उखाड़-उखाड़कर मत देखते रहें-अभी तक बीज फूटा, नहीं फूटा! नहीं तो फिर कभी नहीं फूटेगा, बीज खराब ही हो जाएगा। तो ध्यान करके हर बार न पूछे कि अभी पहुंचे, कि नहीं पहुंचे। बोते
सींचते जाएं। जब अंकर निकलेगा, पता चल जाएगा। जल्दी न करें, बार-बार उखाड़कर मत देखें।
एक सूफी फकीर हुआ बायजीद। अपने गुरु के घर बारह वर्षों तक था। बारह वर्षों तक उसने यह भी न पूछा कि मैं क्या करूं। बारह वर्ष बाद एक दिन गुरु ने कहा, बायजीद, किसलिए आया है, कुछ पूछता भी नहीं। तो बायजीद ने कहा, प्रतीक्षा करता हूं, जब आप पाएंगे कि मैं योग्य हूं, तो आप खुद ही कह देंगे।
- यह संन्यासी का लक्षण है। बारह वर्ष! सांझ आकर पैर दाब जाता है, सुबह कमरा साफ कर देता है, चुपचाप बैठ जाता है, दिनभर बैठा रहता है। रात जब गुरु कह देता है कि अब मैं सो जाता हूं, तो चला जाता है। बारह वर्ष बाद गुरु पूछता है बायजीद, बहुत दिन हो गए तुझे आए, कुछ पूछता नहीं है! तो बायजीद कहता है, जब मेरी पात्रता होगी, जब आप समझेंगे कि क्षण आ गया कुछ कहने का, तो आप ही कह देंगे। मैं राह देखता हूं। और बायजीद ने कहा कि जो मैं पूछता उससे मुझे जो मिलता, वह इस राह देखने में अनायास मिल गया। अब मैं बिलकुल शांत हो गया हूं। यह बारह वर्ष कुछ किया नहीं, बैठकर बस आतुर प्रतीक्षा की है। तो मैं एकदम शांत हो गया हूं। भीतर कोई विचार नहीं रहे हैं। ' आतुरता विचार ला देती है। जल्दबाजी विचार पैदा करवा देती है। अगर प्रतीक्षा हो, तो विचार शांत हो जाते हैं। जल्दी कुछ हो जाए, इसी से मन में तूफान उठते हैं। कभी भी हो जाए, जब होना हो। और न भी हो, तो भी परमात्मा पर छोड़ देने का नाम प्रतीक्षा है। कोई शिकायत नहीं।
धैर्य उनकी गुदड़ी है। कोई शिकायत नहीं। वह जो दिखा दे ठीक, वह जो न दिखाए ठीक। अंतहीन।
इसका यह अर्थ नहीं है कि अंतहीन हो जाती है बात। इतनी तैयारी हो, तो इसी क्षण घट जाती है बात; क्योंकि इतनी तैयारी वाले व्यक्ति के लिए अब और रोकने का कोई कारण नहीं है। जिसके पास धैर्य की गुदड़ी है, उसके पास सत्य का धन तत्क्षण उपलब्ध हो जाता है।
उदासीन वृत्ति उनकी लंगोटी है।
उदासीन वृत्ति। थोड़ा समझ लें। साधारणतः जो हम उदासीन से समझते हैं, वह अर्थ नहीं है। उदासीन से हम समझते हैं कि जो व्यक्ति, जहां-जहां वासनाएं रस लेती हैं, वहां-वहां अपने को उदास रखता है, दूर रखता है; रस नहीं लेता, विराग रखता है, विरस रहता है। जहां-जहां इंद्रियां मांग करती हैं, वहां-वहां अपने को रोक लेता है।
नहीं, उदासीन का यह अर्थ नहीं है। अगर व्यक्ति अपने को पॉजिटिवली, विधायक रूप से रोकता है, तो फिर उदासीन नहीं रहा। चुनाव शुरू हो गया।
मेरे मन ने कहा कि यह बड़ा भवन मुझे मिल जाए, मैंने कहा कि नहीं दूंगा, मैं उदासीन हूं, मैं इस
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