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निर्वाण उपनिषद
क्योंकि मुझे अपनी संपदा का कोई पता ही नहीं है। और आप धनवान रहेंगे, क्योंकि आपको अपनी संपदा का पता है। और फिर भी संपदा मेरे पास उतनी ही है, जितनी आपके पास है।
लेकिन उस संपदा का क्या मूल्य, जिसका हमें पता ही न हो ! उस तिजोरी का क्या मूल्य, हमें मालूम ही न कि वह तिजोरी है ! उस हीरे का क्या करिएगा, जिसको हम पत्थर समझकर और घर के एक कोने में डाल रखे हैं! पर इससे फर्क नहीं पड़ता। वह संपदा हमारी है।
यही ऋषि उपदेश करते हैं। यही वे समझाते रहते हैं— अहर्निश, सब रूपों में, सब भांति, सब प्रकार से एक ही बात समझाते रहते हैं कि जो उनके भीतर है, वही तुम्हारे भीतर भी है। और सबके भीतर वही है। यह भरोसा एक बार आ जाए, यह ट्रस्ट एक बार आ जाए कि मेरे भीतर भी वही है, तो शायद मैं छलांग लगाने के लिए तैयार हो जाऊं ।
शायद यह स्मरण एक बार आ जाए कि वही मेरे भीतर भी है, तो शायद मैं खोज पर निकल जाऊं। खोदने के लिए तैयार हो जाऊं। कोई कह दे कि वह खजाना मेरे घर के नीचे भी गड़ा है, तो शायद मैं कुदाली उठा लूं। आलसी आदमी हूं, सोया पड़ा रहता हूं, लेकिन खजाने की याददाश्त कोई दिला दे, तो शायद मैं आलसी, पड़ा रहने वाला, सोने वाला भी उठ आऊं । दो-चार हाथ चलाऊं, तो शायद नीचे के घड़ों की आवाज आने लगे। और थोड़ा आगे बढूं, तो शायद घड़े मिल जाएं। घड़ों को फोडूं, तो शायद खजाना मिल जाए।
तो ऋषि निरंतर कहते रहते हैं। उनकी श्वास- श्वास एक ही बात बन जाती है कि वह याद दिलाते रहें लोगों को कि वह परमहंस सबके भीतर छिपा हुआ है।
आज इतना ही ।
अब हम उस खजाने की खोज पर निकलेंगे। उस परमहंस को थोड़ा खोजें - सच में छिपा है, नहीं छिपा है ?
दो-तीन बातें खयाल में ले लें। फिर उठें। दो-तीन बातें समझ लें ।
कल का रात का प्रयोग तो ठीक हुआ, लेकिन दो-तीन छोटी-छोटी भूलें थीं, वे आज न हों, इसका खयाल रखें। एक तो जिन लोगों को भी खड़ा रहना हो, जिन्हें ऐसा लगता कि उनसे कूदना नहीं हो सकेगा- - लगना तो नहीं चाहिए, थोड़ी कुदाली चलाएं, थोड़ा कूदें, थोड़ा श्रम करें - फिर भी जिन्हें लगता हो कि वे खड़े ही रहेंगे, तो मेरे सामने खड़े न हों। क्योंकि उनकी वजह से आसपास जो लोग हैं, उनकी गति भी क्षीण होती है। फिर वे पीछे चले जाएं। जिनको ऐसा लगता हो कि कुछ भी करके हमसे नाचना न हो सकेगा, वे पीछे खड़े हों।
मेरे सामने और चारों तरफ - मेरे पीछे और मेरे दोनों तरफ - तो वे लोग हों, जो पूरी शक्ति से कूदने वाले हैं। उनका कूदना संक्रामक हो जाना चाहिए, लहरें बन जानी चाहिए, तो जो पीछे खड़े हैं उनको भी शायद थोड़ी हिम्मत आ जाए। वे भी शायद इंफेक्शन में आ जाएं और उनसे भी शायद दौड़ शुरू हो जाए।
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