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संन्यासी अर्थात जो जाग्रत है, आत्मरत है, आनंदमय है, परमात्म-आश्रित है
लेकिन मेरे सामने कोई व्यक्ति ऐसा न खड़ा रहे। क्योंकि उसके कारण अवरोध पैदा होता है। अगर एक व्यक्ति खड़ा है, तो चार-पांच व्यक्तियों के आसपास के घेरे को वह खराब करता है। जिनको खड़ा होना है, वे पीछे चले जाएं। जब खड़ा ही होना है, तो पीछे खड़ा होना बेहतर है। यहां तो खड़े हों जिनकी पागल होने की पूरी इच्छा हो ।
दूसरी बात, तीस मिनट तक तो मेरी तरफ अपलक आंख रखनी हैं। पलक झपानी ही नहीं है। साथ में कूदना है, चिल्लाना है, आनंदित होना है और हू की आवाज करनी है— पूरे तीस मिनट । पहले दो मिनट गहरी श्वास ले लें, ताकि शक्ति जग जाए। पहले जोर से श्वास ले लें, फिर हम प्रयोग शुरू करें।
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