________________ 282 योगशास्त्रे वईमानः क्रमात्यित्रोमनोरथ इवोच्चकैः / सुदर्शनो यथौचित्यं जग्राह सकला: कलाः // 38 // कन्यां मनोरमां नाम मनोरमकुलाकृतिम् / साक्षादिव रमा श्रेष्ठी 'तेन ती पर्यणाययत् // 40 // सौम्यमूर्तिः स हर्षाय पित्रोरेव न केवलम् / जज्ञे राज्ञोऽपि लोकस्य सर्वस्य च शशाश्वत् // 41 // इतो नगया तत्राभूपते हृदयङ्गमः / पुरोधाः कपिल: प्राप्तरोधा विद्यामहोदधेः // 42 // समं सुदर्शनेनास्य मन्मथेन मधोरिव / प्रजायत परा प्रौतिः सर्वदाऽप्यविनखरी // 43 // (युग्मम्) प्रायः सुदर्शनस्यैव स पुरोधा महात्मनः / रौहिणेय इवोणांशोः परिपार्समवर्तत // 44 // कपिलं कपिला नाम भार्या ऽपृच्छत्तमन्यदा।। विस्मरनित्यकर्माणि कियत्कालं नु तिष्ठसे // 45 // , पाचे सुदर्शनस्याहं तिष्ठामीति तदीरिते। कोऽसौ सुदर्शन इति तयोक्तः प्रत्युवाच सः // 46 // मम मित्रं सतां धुयं विचकप्रियदर्शनम् / सुदर्शनं न चेहेसि तत्त्वं वेसि न किञ्चन // 47 // (1) ख च ड तेनाथो-। (2) ख च -स्यैव / (3) क ग त तिष्ठसि /