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________________ २४६ चिकित्साकलिका। अतिसार में बालकों को लोध, गजपिप्पली, गन्धबाला, धाय के फूल, बेलगिरी; इनके क्वाथ में मधु का प्रक्षेप देकर पिलाना अथवा इनके चूर्ण को मधु के साथ चटाना अत्यन्त हितकर है । एक वर्ष के बच्चे के लिये चूर्ण की मात्रा-एक अथवा दो रत्ती ॥ ३७८॥ अधुना बालकस्य मुखपाकगुदपाकयोः प्रशमार्थमाह जातीप्रवालकुसुमानि समाक्षिकाणियोज्यानि बालकजनस्य मुखप्रपाके । पाके गुदस्य च रसाञ्जनमम्बुपिष्ट मिष्टं भिषम्भिरुपदिष्टमिदं जनानाम् ॥ ३७९॥ . बालकस्य मुखपाके सति जातीप्रवालकुसुमानि प्रवालाः पल्लवाः कुसुमानि पुष्पाणि तानि समाक्षिकाणि योज्यानि योजनीयानि । गुदस्य च पाके सति रसाञ्जनमम्बुपिष्टं लपे इष्टमभिप्रेतम् । भिषग्भिवैद्यैर्जनानां प्राणिनाम् । योगद्वयमिष्टमुपदिष्टमिति ॥ ३७९॥ बालकों के मुखपाक में चमेली के पत्ते तथा फूलों को पीस कर मधु मिला जिह्वा आदि पर लगाना चाहिये । तथा गुदपाक में रसौंत को जल में पीस कर लेप देना चाहिये । वैद्यों ने इन दो प्रशस्त योगों का मनुष्यों को उपदेश किया है ॥३७९॥ इदानी छर्दिकासज्वराणां चिकित्सितमुवाचसातिविषा सकुलीरविषाणा मागधिका मधुना समवेता। छबिहरी कथिता त्वथ कृष्णा कासहरी ज्वरजिच्च शिशूनाम् ॥३८०॥ शिशूनां बालानां मागधिका पिप्पली सातिविषा अतिविषया सह। कुलीरविषाणा कर्कटशृङ्गी तया सह । मधुना समवेता मधुसंयुक्ता। बाले हिकाछाहरी कथिता। अथ कृष्णा पिप्पली मधुना समवेता मधुयुक्ता बाले हिक्काकासहरी ज्वरजित् च कथितेति ॥ ३८० ॥ ' इति तीसटसुतचन्द्रटविरचितायां चिकित्साकलिकाटीकायां कुमारभृत्यं समाप्तम् ॥ अतीस, काकड़ासिंगी, पिप्पली; उनके चूर्ण को मधु के चटाने से बालकों का छदिरोग (कै), कास (खांसी) तथा ज्वर नष्ट होता है । मात्रा-चौथाई रत्ती तक । इसी प्रकार पिप्पली चूर्ण कास तथा ज्वर को नष्ट करता है ।। ३८०॥
SR No.002391
Book TitleChikitsa Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendranath Mtra
PublisherMitra Ayurvedic Pharmacy
Publication Year
Total Pages274
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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