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________________ शोषचिकित्सा। १८१ शोषादयः साफल्यं सफलत्वं न ब्रजन्ति । न च मनसि व्यापदः संभवन्ति । उन्मादादयो मानसा विकाराः । न च धियो बुद्धयः भ्रान्ति विभ्रति धारयन्ति । अन्तरन्तःकरणे प्रज्ञा अवबोधो ज्ञेये ज्ञातव्ये पुरः अग्रतः प्रसरति । जरा वृद्धत्वं जडतां व्रजेत् विश्रब्धत्वमायातीत्यर्थः। वलयश्च पलितानि च नैवाकस्मात् सहसा पदमास्पदं विदधति कुर्वन्ति। न च रुग्भ्यो रोगेभ्योऽपि भयं भवति । च्यवनो नाम ऋषिस्तेन रचितो विरचितः प्राशः च्यवनप्राशः च्यवनरचितप्राशः तस्य प्राशनं प्राशः प्रकर्षणाभ्यवहारः तस्मात् अपुण्यशतानि पापशतानि काये शरीरे आस्पदं स्थानं न प्राप्नुयुः कथञ्चनापि ॥२६२-२६५॥ च्यवनप्राश-काकड़ासिंगी, भुई आंवला, हरड़, बहेड़ा, आंवला, बलामूल, गिलोय, विदारीकन्द,कचूर, जीवन्ती, बिल्वछाल, अरणीछाल, श्योनाकछाल, गाम्भारीछाल, पाढलछाल, शालपर्णी, पृश्निपर्णी, छोटीकटेरी, बड़ी कटेरी, गोखरू, लालचन्दन, नीलोत्पल, छोटी इलायची, अडूसा छाल, द्राक्षा, अष्टवर्ग (ऋद्धि, वृद्धि, मेदा, महामेदा, काकोली, क्षीरकाकोली, जीवक, ऋषभक), पुष्करमूल; प्रत्येक १ पल, पोटली में बंधे हुए ५०० आंवले, इन्हें एकत्र २ द्रोण जल में सिद्ध करें। जब क्वाथ आधा द्रोण अवशिष्ट रह जाय तब क्वाथ को छान लें और आंवलों को पोटली से निकाल बीज एवं रेशों को पृथक् करलें । इन आंवलों को अच्छी प्रकार पीसकर ६ पल घृत एवं ६ पल तिलतल (एकत्र मिश्रित ) में भून लें। पश्चात् मत्स्यण्डिका ( विशुद्ध दानेदार खांड) ५० पल (५ सेर) को क्वाथ में घोल कर भर्जित आंवलों में डाल कर पकावें । पकाते २ जब लेहवत् गाढा होजाय तब नीचे उतार लें और शीतल होने पर ६ पल मधु, वंशलोचन ४ पल, छोटी इलायची, दारचीनी, तेजपत्र, नागकेसर, प्रत्येक का चूर्ण २ तोले, पिप्पली २ पल; इनका प्रक्षेप दें और अच्छी प्रकार आलोडन करें। मात्रा-आधे तोले से दो तोले तक । शरीर के क्षीण होने पर भी च्यवनप्राश के सेवन से शोष (राजयक्ष्मा) सफलता को प्राप्त नहीं होता अर्थात् राजयक्ष्मा नष्ट होता है तथा मूर्छा, छर्दि (कै), तृष्णा, श्वास, कास, प्रभृति रोग शान्त होते हैं, दरिद्रता एवं कोई विघ्न उपस्थित नहीं होता । इसके प्रयोग से उन्माद आदि मानसिक रोग नहीं होते, बुद्धि कभी भ्रान्त नहीं होती तथा च ज्ञेय विषय में प्रज्ञा प्रस्फुरित होती है । वृद्धावस्था एवं वलीपलित आदि इसके सेवक को सहसा आक्रान्त नहीं करते । इसका सेवन करने वाला रोगों के भय से सदा विमुक्त रहता है एवं सेवन करने वाले के शरीर पर पाप अधिकार नहीं कर सकते । यह च्यवनप्राश चरकोक्त च्यवनप्राश से कुछ भिन्न है । चरकोक्त च्यवनप्राश में क्वाथ्य द्रव्यों में माषपर्णी, मुद्गपर्णी, पिप्पली, अगर, पुनर्नवा, काकनासा, इनका पाठ अधिक है तथा वृद्धि, महामेदा, क्षीरकाकोली आंवला, बहेड़ा इनका पाठ नहीं है । यदि टिप्पणी
SR No.002391
Book TitleChikitsa Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendranath Mtra
PublisherMitra Ayurvedic Pharmacy
Publication Year
Total Pages274
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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