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________________ १४८ चिकित्साकलिका। त्योजस्करम् । अमेधसां मेधारहितानां मेध्यम् । मेधाहितं मध्यम् । मङ्गलानि जनयतीति माङ्गल्यम् । आयुःप्रदं आयुः प्रकर्षेन ददातीत्यायुः प्रदम् । आयुः शब्देन शरीरेन्द्रियसत्त्वानां संयोगः । तथा च चरकाचार्यः- “शरीरेन्द्रियसत्त्वात्मसंयोगो धारि जीवितम् । नित्यगश्चानु. बन्धश्च पर्यायैरायुरुच्यते”। पित्तकफामयान् हन्तीति पित्तकफामयनमन्यदस्मान्महाखादिरान्न विद्यते ॥ १९४-१९८ ॥ गव्यघृत ८ प्रस्थ । काथार्थ खदिरकाष्ठ ४ तुला (४० सेर ), जल विशुद्ध ८ द्रोण, अवशिष्ट काथ २ द्रोण । कल्कार्थ-त्रायमाण, इन्द्रजौ, करञ्जबीज, भोजपत्र, चिरायता, नीम की छाल, मोथा, पित्तपापड़ा, अडूसा, कुटकी, पटोलपत्र, गिलोय, हरड़, बहेड़ा, आंवला, खदिरकाष्ठ, पद्माख, हल्दी, दारहल्दी, लालचन्दन, सतौने की छाल, असन (पीतशाल) काष्ठ, शिरीषछाल, शिंशपा (शीशम) काष्ठ, मूर्वामूल, शतावर, पिप्पली, इन्द्रायण, पाढ़, वच, अतीस, अनन्तमूल, प्रत्येक ४ तोले । यथाविधि घृत पाक करें । मात्रा-आधा तोला । यह घृत कुष्ट श्वित्र, अत्यन्त प्रवृद्ध मेद (चर्बी ), तथा प्रमेह आदि रोगों से पीडित पुरुषों के उन २ रोगों को नष्ट करता है । यह घृत ओज तथा मेधा को बढ़ाता है । यह मंगलकर तथा आयुःप्रद है। पित्तकफज रोगों के नाश के लिये इस घृत से बढ़ कर अन्य औषध नहीं ॥ १९४-१९८ ॥ .. महाखादिरानन्तरं खदिरघृतमाहखदिरसारकषायविपाचितं कृतफलत्रिककल्कमिदं घृतम् । हरति कुष्ठमथ त्रिफलामृताखदिरनिम्बपटोलवृषः शृतम् ॥१९९॥ खदिरसारकषायविपाचितं, खदिरसारपलशतं जलद्रोणे विपाच्य चतुर्थाशेन कषायेण विपाचितं घृतं प्रस्थसम्मितम् । कृतफलत्रिककल्क, कृतः फलत्रिकेण कल्को यस्मिन्तथा फलत्रिकस्य चत्वारि पलानि कल्कीक्रियन्ते । इदं खदिरघृतं कुष्ठं हरति । खदिरघृतानन्तरं त्रिफलाघृतमाह-अथ त्रिफलामृताखदिरनिम्बपटोलवृषैः शृतम् । त्रिफलादिभिः कषायकल्कैः घृतं शृतं पक्कं कुष्ठं हरतीति ॥ १९९ ॥ खदिरघृत-गव्यघृत २ प्रस्थ । काथार्थ खदिरकाष्ठ १ तुला (१० सेर), जल २ द्रोण, अवशिष्ट क्वाथ आधा द्रोण । कल्कार्थ-त्रिफला ४ पल । यथाविधि पाक करें। यह घृत कुष्ठ को हरता है । मात्रा-आधा तोला। त्रिफलाघृत-गव्यघृत २ प्रस्थ । क्वाथार्थ-त्रिफला, गिलोय, खदिर काष्ट, नीम की छाल, पटोलपत्र, अडूसा; मिलित ४ प्रस्थ, काथार्थ जल ३२ प्रस्थ, अवशिष्ट काथ ८ प्रस्थ । कल्कार्थ-उपर्युक्त क्वाथ्यद्रव्य मिलित; ८ पल । यथाविधि साधित करें। यह घृत भी कुष्ठ नाशक है। मात्रा-आधा तोला ॥ १९९॥
SR No.002391
Book TitleChikitsa Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendranath Mtra
PublisherMitra Ayurvedic Pharmacy
Publication Year
Total Pages274
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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