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(९०) तत्पर हो, इत्यादि अनेक बातें वाराहपुराण में लिखी हुई हैं । इसलिये ये सब बातें एसियाटिक सोसायिटी के छपे हुए वाराह पुराण में देखने से पाठकों को स्पष्ट मालूम होंगी। इसी तरह कूर्मपुराण में भी अहिंसा धर्म की साक्षी देनेवाले श्लोक हैंयथा" न हिंस्यात् सर्वभूतानि नानृतं वा वदेत् क्वचित् । नाहितं नाप्रियं ब्रूयात् न स्तेनः स्यात् कथश्चन ॥२॥
__अध्याय १६ पृष्ठ ५५३ भावार्थ-सब भूतों की हिंसा नहीं करनी, झूठ नहीं बोलना, अहित और अप्रिय नहीं बोलना और किसी. प्रकार की चोरी भी नहीं करनी चाहिये।
विवेचन-पुराणों मे हिंसा करने, चोरी करने तथा अहित अप्रिय और झूठ बोलने की भी मनाही की गयी है। इतना लिखे रहने पर भी स्वार्थान्ध पुरुष अमूल्य महावाक्यों का अनादर करके, जिसम प्राणियों का अहित
और अप्रिय दोनों हों, ऐसे ही कामों को करते और कराते हैं ओर करनेवाले को अच्छा मानते हैं। जहाँ बलिदान होता है वहां पर मरनेवाले जीव का अहित और अप्रिय नहीं तो क्या होता है? यह भी विचार करने के योग्य है । क्योंकि प्राण से प्यारी कोई भी चीज दुनिया भर में नहीं है, यह बात जैन सिद्धान्त से तथा महाभारत आदि से सिद्ध हो चुकी है। किन्तु अब विचारने की बात यह है कि बलिदान करके जो प्राणियों के प्राण लिये जाते हैं, उसमें उनका अहित