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.. ॥ अहम् ॥ शान्तमूर्तिश्रीवृद्धचंद्रगुरुभ्यो नमः। अहिंसादिग्दर्शन।
नत्वा कृपानदीनाथं जगदुद्धारकारकम् । अहिंसाधमदेष्टारं महाबीरं जगद्गुरुम् ॥ १॥ मुनीशं सर्वशास्त्रज्ञ वृद्धिचन्द्र गुरु तथा । समदृष्ट्या दयाधर्मव्याख्यानं क्रियते मया ॥ २ ॥
__ अनादि काल से जो इस संसार में प्राणीमात्र नये नये जन्मों को ग्रहण करके जन्म, जरा, मरणादि असह्य दुःखों से दुःखित होते हैं उसका मूल कारण कर्म से अतिरिक्त कोई दूसरा पदार्थ नहीं है। इस लिये समस्त दर्शन (शास्त्र) कारों ने उन कर्मों को नाश करने के लिए शानद्वारा जितने उपाय बतलाये हैं, उन उपायों में सामान्यधर्मरूप-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, निस्पृहत्व, परोपकार, दानशाला, कन्याशाला, पशुशाला, विधवाऽऽश्रम, अनाथाश्रमादि सभी दर्शनवालों को अभिमत हैं; किन्तु विशेषधर्मरूप-स्नान-सन्ध्यादि उपायोंमें विभिन्न मत है, अत एव यहाँ विशेषधर्मकी चर्चा न करके केवल सामान्यधर्म के मंबन्ध में विवेचना कर