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________________ (२५) बकरा आदि भी (जो बलि दिये जाते हैं ) आये उनकी भी तो माता ही ठहरी न । अब सोचिये कि एक पुत्र को खाकर माता दूसरे को बचावे, ऐसा कभी होसकता है ? क्योंकि माताके सभी पुत्र समान ही होते हैं। अज्ञानी लोग स्वार्थान्ध होकर माता की मर्जी से विरुद्ध आचरण करके जीवहिंसा के लिए साहस करते हैं, उसी कारण से इस समय महामारी, हैजा, प्लेग आदि महाकष्ट को लोग भोगते हैं । क्योंकि माता हाथ में लाठी लेकर नहीं मारती। केवल परोक्ष रीति से मनुष्यों की अनीति का दण्ड देती है। मैंने स्वयं देखा है कि विन्ध्याचल में देवीजी का मन्दिर है, वहां पर हजारों संस्कृत के पण्डित विशेष करके नवरात्र में मिलते हैं और प्रातःकाल से लेकर सन्ध्या समय तक वे लोग समस्त सप्तशती (दुर्गा पाठ) का पाठ करते हैं, जिसमें कि दुर्गा की भक्ति की प्रशंसा ही है किन्तु वहां पर अनाथ, निर्नाथ, और गरीब से गरीब बकरे और पाठे का बलिदान जो देते हैं वह देखकर उनके भक्तों के मनमें भी एक दफे शङ्का होती है कि ऐसी हिंसा करके पूजा करता कहां से चला होगा ? माता भी अपने पुत्र के मारने से नाराज होकर हैजा आदि रूपसे उपद्रव करती है तब ब्राह्मण वगैरह भागते हैं और कितनेही लोग बकरे के मार्गानुगामी होते हैं। यह बात बहुत बार लोगों को प्रत्यक्ष देखने में आती है, और स्वयं अनुभव किया जाता है; तथापि पकडी हुई गदहे की पूँछ को छोड़तेही नहीं । माता की भक्ति बकरे मारने से नहीं होती है । अपने २ मत में मानी हुई काली, महाकाली, गौरी,
SR No.002390
Book TitleAhimsa Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1923
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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