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________________ (२३) होगा । दस बकरों को अगर देवता के मन्दिर में रात को रखकर चारों तरफ से उस मन्दिर की रक्षा की जाय, फिर प्रातःकाल अगर मन्दिर खोलकर देखा जाय तो उन दस बकरों में से एक भी कम नहीं होगा । इससे यह स्पष्ट होता है कि मांसमात्र के लोभी लोग, बिचारे भोले भाले लोगों को भरमाकर नाहक दूसरे के प्राणों का नाश कराते हैं । अपनी जिह्वा की क्षणभर तृप्ति के लिये बिचारे जीवों के जन्म को नष्ट कराते हैं। कई एक भक्तलोग देवी के सामने मनौती करते हैं कि “ हे माता जी ! मेरा लड़का यदि अमुक रोग से मुक्त होगा तो मैं आपको एक बकरा चढाऊँगा” । अगर कर्म के योग से बालक के आयुष्यबलसे आराम हुआ तो मानता करनेवाले लोग समझते हैं कि माताजी ने कृपा करके मेरे लड़के का जीवदान दिया, तब खुशी होकर निरपराधी बकरे को बाजे गाजे के साथ भूषित करके देवी के पास लेजाते हैं और वहांपर उसको नहलाकर और फूल चढ़ाकर तथा ब्राह्मणों से स्वर्ग प्राप्त करानेवाले मन्त्रों को मारने के समय पढ़ाकर बकरे का प्राण निर्दय रीति से निकालते हैं। यहां पर एक कवि का वाक्य याद आता है किः " माता पासे बेटा मांगे कर बकरे का साँटा । अपना पूत खिलावन चाहे पूत दूजे का काटा। __ हो दिवानी दुनियां"। देखिये ! दूसरे के पुत्र को मार कर अपने पुत्र की
SR No.002390
Book TitleAhimsa Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1923
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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