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________________ (१६) देखिये स्वार्थ और इंद्रियस्वाद में लुब्ध अपनी झूठी कीर्ति के लिए उन लोगों ने कैसा अनर्थ किया ? क्योंकि विचार करने की बात है, यदि हिमाही से धर्म होता हो तो फिर अधर्म किसे कहा जायगा ? क्योंकि मांसाहार करने वाले का मन प्रायः दुःखित और मलिन रहता है और किसी जीव के देखने पर उसके मनमें यही भाव उत्पन्न होता है कि यह जीव कैसा सुंदर है और इसका मांस स्वादिष्ट तथा पुष्टिकर ही होगा, तथा इससे कितना मांस निकलेगा । इसलिए मांसाहारी को वन में जानेपर हरिणादि जीवों को देखकर उनके पकडने की ही अभिलाषा उठती है । अथवा तालाब या नदी के किनारे पर मत्स्य को देखकर मारने ही की अभिलाषा उत्पन्न होती है । इसी तरह आठपहर हिंसक जीव रौद्रपरिणामवाला बना रहता है । जैसे व्यान, सिंह, बिल्ली आदि हिंसक जीवों को, खाने के लिए कोई जीव न मिलने पर भी जैसे कर्मबंधन करने से जरकादि गति अवश्य मिलती है, वैसी ही मांसाहारी जाध की दशा जाननी चाहिए । हा; मांसाहारी जीव सुन्दर पक्षियों का नाश करके जङ्गलों को शून्य कर देते हैं और सुन्दर बगीचे में अपने कुटुम्ब के साथ आनन्द से बैठे हए पक्षियों की बन्दक वगैरह से मारकर नीचे गिरा देते हैं। मुझे विश्वास है कि उस समय के बीभत्स दृश्य को दयालु पुरुष तो कभी नहीं देख सकता, लेकिन मांसाहारी तो उसीको देखकर बड़ी प्रसन्नता से मारनेवाले को उत्तेजना देता है कि वाह ! एकही गोली से कैसा निशाना मारा।
SR No.002390
Book TitleAhimsa Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1923
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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