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________________ (१४) दिखाई पड़ते हैं । वर्तमान के अल्पज्ञ और रसनेन्द्रिय के लोभी, ऐसे उत्तम भोजन में कुत्सित मांस को मिलाकर भातके सर्वोत्तम और स्वतन्त्र ( बुद्धि बढ़ानेवाले । गुण को नष्ट कर देते हैं । और बाकी बचे हुए गुण को भी जो मांसादि का ही गुण मानते हैं, वह उनकी कितनी भारी भूल है । अगर मछली मांस को छोड़ करके दाल भात का ही आहार रक्खा होता तो आज दिन बङ्गाल वगैरह देश वुद्धिबल में बहुतही बढ़ जाते । अतएव इङ्गालेन्ड जो आजकल बुद्धिबल में तेज है वह भी भात का ही प्रताप है । यद्यपि बुद्धिबल यह गुण आत्मा का ही है तथापि वायु के वेग से वह मलिन हो जाता है, और मांसाहार वायु को विशेष बढ़ाता है। अतएव केवल मांसाहार करनेवाला जंगली (निर्बुद्धि) गिना जाता है। जो किसी २ देश में मनुष्य विशेष बुद्धिमान होते हैं उसका भी कारण उस देश में वायु का प्रकोप कम होनाही मानना चाहिये । जिस आहार में वायु का प्रकोप कम होता है वह आहार उत्तम गिना जाता है; जैसे चावल, दाल, और वनस्पति वायु को नहीं बढ़ाते, इसलिए वह उत्तम ही भोजन है; परन्तु गेहूँ की रोटी, उड़द की दाल मध्यम आहार गिना जाता है, क्योंकि उसमें बुद्धि की वृद्धि और हानि दोनों का प्रायः संभव है, किन्तु वायुकारक होने से सबसे अधम मांसही का आहार गिना गया है। अतएव मनुष्यों को उत्तम आहारही ग्रहण करना योग्य है और अधम सर्वथा त्याज्य है। जिस देश में मांसाहार का विशेष प्रचार है वह देश इतिहासों से असभ्य सिद्ध होता है, किन्तु भारत
SR No.002390
Book TitleAhimsa Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1923
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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