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एस धम्मो सनंतनो
फूल हो। और अपनी सुगंध को खोजना है। और अपनी सुगंध को मुखर करना है। अपनी सुगंध को प्रगट करना है। अभिव्यंजना देनी है। जो गीत तुम्हारे भीतर पड़ा है, उसे गाया जाना है। और जो नाच तुम्हारे भीतर पड़ा है, उसे नाचा जाना है। __नाचोगे, गाओगे, खिलोगे तो ही परितृप्ति है। उस परितृप्ति में ही, उस संतोष में ही एक सुगंध है। जो इन नासापुटों से नहीं पहचानी जाती। उसे पहचानने के लिए भी और नासापुट चाहिए। जैसे भीतर की आंख होती है, ऐसे भीतर के नासापुट भी होते हैं।
जरूरी नहीं कि तुम बुद्ध के पास जाओ, तो तुम्हें सुगंध मिले। तुम अगर अपनी दुर्गंध से बहुत भरे हो, तो शायद तुम्हें बुद्ध की सुगंध का पता भी न चले। तुम अगर अपने शोरगुल से बहुत भरे हो, तो तुम्हें बुद्ध का शून्य, और संगीत उस शून्य का कैसे सुनायी पड़ेगा!
गंधकुटी के चारों ओर जुही के फूल खिले थे।
शास्ता ने उन भिक्षुओं को कहा ः भिक्षुओ! जुही के खिले इन फूलों को देखते हो!... ___एक फूल तो बुद्ध का खिला था। मगर शायद अभी ये भिक्षु उसे नहीं देख सकते, इसलिए मजबूरी है और बुद्ध को कहना पड़ाः भिक्षुओ! इन जुही के खिले फूलों को देखते हो? ये सुवासित फूल, इन पर ध्यान दो। इन फूलों में कई राज छिपे हैं। एक तो कि ऐसे ही फूल तुम हो सकते हो। ऐसी ही सुवास तुम्हारी हो सकती है।
दूसराः ये फूल सुबह खिलते हैं, सांझ मुझ जाते हैं। ऐसा ही यह मनुष्य का जीवन है। इसमें मोह मत लगाना। यह आया है, यह जाएगा। इस पर मुट्ठी मत बांधना। इसके साथ कृपणता का संबंध मत जोड़ना। यह तो आया है और जाएगा। जन्म के साथ ही मृत्यु का आगमन हो गया है। __ ये फूल अभी कितने खुश दिखायी पड़ते हैं। सांझ मुझ जाएंगे; गिर जाएंगे धूल में और खो जाएंगे। ऐसा ही जीवन है।
जो जीवन को पकड़ना चाहता है, वह सदा दुख में ही रह जाता है। जीवन को पकड़ो मत। यह पकड़ा जा नहीं सकता। बहता है, बहने दो। इसे समझो। यह ध्यान की आधारशिला है। ____ तुम्हारे जीवन का दुख क्या है? तुम्हारे जीवन का मौलिक दुख यही है कि जो रुकेगा नहीं, उसे तुम रोकना चाहते हो। तुम्हारे जीवन का मौलिक दुख यही है कि जो नहीं होगा, उसे तुम करना चाहते हो; जो हो ही नहीं सकता। ___जैसे तुम जवान हो, तो तुम सदा जवान रहना चाहते हो। यह हो ही नहीं सकता, तो दुखी होने वाले हो। दुख कोई तुम्हें दे नहीं रहा है। तुम अपना दुख पैदा कर रहे हो। जवान को बूढ़ा होना ही पड़ेगा। इसमें कुछ बुराई भी नहीं है। प्रवाह है। जवानी का अपना सौंदर्य है; बुढ़ापे का अपना सौंदर्य है। और अगर बुढ़ापा तुम्हें कुरूप
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