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________________ विराट की अभीप्सा दिखायी पड़ता है, तो उसका एक ही कारण है कि यह बूढ़ा आदमी अभी भी जवानी को पकड़ने की कोशिश में होगा, जो इसके हाथ से छूट गयी है। इसलिए बुढ़ापे का निश्चित भोग नहीं कर पा रहा है। नहीं तो बचपन का अपना सौंदर्य है; जवानी का अपना सौंदर्य है; बुढ़ापे का अपना सौंदर्य है। और ध्यान रखना : बुढ़ापे का सौंदर्य सबसे बड़ा सौंदर्य है, क्योंकि सबसे अंत में आता है। वह फूल आखिरी है। ___ इसलिए तो इस देश में हम बूढ़े को आदर देते हैं। सब बूढ़े आदर के योग्य होते नहीं, इसे जानकर भी देते हैं। मान्यता भीतर यह है कि अगर कोई आदमी बचपन में पूरी तरह बचपन जीया हो, और जब बचपन चला गया, तो पीछे लौटकर न देखा हो; दो आंसू न बहाए हों उसके लिए। जवानी में पूरी जवानी जीया हो। और जब जवानी चली गयी, तो लौटकर न देखा हो। वह आदमी पूरा बुढ़ापा जीएगा। उसके बुढ़ापे में प्रज्ञा होगी, बोध होगा, समझ होगी। बच्चा तो कितना ही निर्दोष हो, फिर भी अबोध होता है। उसकी निर्दोषता में एक तरह का अज्ञान होता है। उसकी निर्दोषता अज्ञान की पर्यायवाची होती है। वह निर्दोष है, क्योंकि अभी उसने जाना नहीं है। ___ जवानी जिद्दी होती है। जवानी सपनों से भरे हुए समय का नाम है। जवानी हजार सपने देखती है और हजार तरह की विपदाओं में पड़ती है। जवानी में हजार तरह की मूढ़ताएं सुनिश्चित हैं। जवानी एक तरह की मूढ़ता है। एक तरह का नशा है जवानी। एक तरह की मदहोशी है। जवानी में बड़ी गति है, और बड़ी त्वरा है, और बड़ी ऊर्जा है, लेकिन बड़ी विक्षिप्तता भी है। बुढ़ापे में जवानी की मूढ़ता गयी, विक्षिप्तता गयी, पागलपन गया। जवानी का जोश-खरोश गया। जवानी की उत्तेजना, ज्वर गया। बचपन का अज्ञान गया।। जीवन के सारे अनुभव बूढ़े को ताजा कर जाते, निखार जाते, शुद्ध कर जाते। अब न वासना के अंधड़ उठते, न बचपन का अज्ञान खिलौनों में उलझाता। न जवानी की विक्षिप्तता पद, धनं, प्रतिष्ठा की दौड़ में महत्वाकांक्षा जगाती। एक शांति उतरनी शुरू हो जाती है। बूढ़ा एक अपूर्व संतोष से भरने लगता है। सब, जो देखना था, देख लिया। सब, जो जानना था, जान लिया। अब घर लौटने लगता है। लेकिन हमारी तकलीफ यह है कि हममें से बहुत कम लोग बूढ़े हो पाते हैं। बूढ़े हों कैसे? जो बूढ़े हैं, वे भी अभी जवानी का विचार करते रहते हैं; बचपन का विचार करते रहते हैं। कहते हैं : अरे! वे दिन गजब के थे! जो आदमी यह कहे कि जो दिन बीत गए, वे गजब के थे, समझना : यह आदमी बढ़ नहीं पाया। यह प्रौढ़ नहीं हुआ। क्योंकि अगर वे दिन गजब के थे, तो ये दिन और गजब के होने चाहिए, क्योंकि उन्हीं गजब के दिनों के ऊपर खड़े हैं। और जब 25
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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