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एस धम्मो सनंतनो
ये दिन गजब के नहीं हैं, तो वे दिन भी गजब के नहीं हो सकते। जब बुढ़ापे में सौंदर्य नहीं है, तो जवानी कैसे सुंदर रही होगी? अगर गंगा सागर में गिरने के करीब गंगा नहीं है, तो गंगोत्री में कैसे गंगा रही होगी?
बूढ़ा आदमी एक अभिनव सौंदर्य से भर जाता है। उसके सौंदर्य में एक शीतलता होती है; जवानी की गर्मी नहीं। और बूढ़ा आदमी फिर सरल हो जाता है। लेकिन उसकी सरलता में बुद्धिमत्ता होती है-बच्चे का अज्ञान नहीं। बुढ़ापा अदभुत है। __ और जो आदमी ठीक से बूढ़ा हो गया—न पीछे लौटकर देखता जंवानी को, न याद करता बचपन को-वह आदमी अब मृत्यु में भी उतने ही आनंद से प्रवेश कर सकेगा। क्योंकि बुढ़ापे का डर क्या है कि कहीं मैं बूढ़ा न हो जाऊं। वह डर यही है कि बुढ़ापे के बाद फिर आखिरी कदम मौत है।
तो जवान जवानी में ही रुक जाना चाहता है। सब तरह की चेष्टाएं करता है कि किसी तरह पैर जमाकर खड़ा हो जाऊं; यह जो नदी की धार सब बहाए ले जा रही है, यह मुझे अपवाद की तरह छोड़ दे। तो दुख ही दुख होगा।
सुख किसे होता है? सुख उसे होता है, जिसकी जीवन से कोई मांग नहीं। जीवन जो करता है, उसे स्वीकार करने का भाव है। तथाता में सुख है। जवानी, तो जवानी में; बुढ़ापा, तो बुढ़ापा। आज किसी का प्रेम मिला, तो प्रेम और कल प्रेम खो गया. तो उतना ही शांत भाव। आज महल थे, तो ठीक; कल झोपड़े आ गए, तो ठीक।
लेकिन दुनिया में दो तरह के मूढ़ हैं। अगर झोपड़ा है, तो वे चाहते हैं, महल होना चाहिए। और अगर महल है, तो वे चाहते हैं, झोपड़ा होना चाहिए। बड़ी मुश्किल है! आदमी जहां है, वहां राजी नहीं है! अगर झोपड़ा है, तो वे कहते हैं: जब तक महल न मिल जाए, मैं सुखी नहीं हो सकता। और महल मिल जाए, तो आदमी सोचने लगता है : महलों में कहां सुख है? जब तक मैं भिखारी न हो जाऊं सड़क का, तब तक कहां सुख होने वाला है! गरीब अमीर होने की सोचता है; अमीर गरीब होने की सोचता है।
लेकिन तुम जो हो, जहां हो, उसको जीते नहीं। तुम जो हो, जिस क्षण में हो, जहां हो, जैसे हो, उस क्षण को पूरी समग्रता से जी लो। उससे अन्यथा की मांग न करो। जब वह क्षण चला जाएगा, कोई अड़चन न होगी। नया क्षण आएगा। नए क्षण के साथ नया जीवन आएगा।
तो फूलों में यह भी संदेश है। और फूलों में यह भी संदेश है कि यह जीवन सदा रहने को नहीं है। आज है, कल नहीं हो जाएगा। इसलिए यह यात्रा है, मंजिल नहीं है। यहां घर मत बना लेना।
सम्राट अकबर ने फतेहपुर सीकरी का नगर बसाया। बस तो कभी नहीं पाया। नगर बसते कहां! जब तक नगर बसा, तब तक अकबर के मरने के दिन करीब आ गए। फिर जा नहीं पाया। नगर सदा से बे-बसा रहा। लेकिन बनाया सुंदर नगर था।
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