________________
विराट की अभीप्सा
सुंदरतम नगरों में एक बनाया था। और एक-एक चीज बड़े खयाल से रखी थी। एक-एक चीज, एक-एक ईंट बड़े सोच-विचारकर रखी गयी थी।
जो पुल फतेहपुर सीकरी को जोड़ता है, उस पुल पर क्या वचन लिखे जाएं? तो अकबर ने सालों उस पर विचार किया था। नगरद्वार पर स्वागत के लिए क्या वचन लिखे जाएं? फिर जीसस का प्रसिद्ध वचन चुना था। वचन है कि यह संसार एक सेतु है; इससे गुजर जाना; इस पर घर मत बना लेना। ___ फूल में यह संदेश है : यहां सब बीत जाएगा। घर मत बना लेना। घर जो बना लेता है जीवन में, वही गृहस्थ है। और जो घर नहीं बनाता, वही संन्यस्त है।
संन्यास के लिए घर छोड़कर जाने की जरूरत नहीं है। संन्यास के लिए घर बनाने की आदत छोड़ने की जरूरत है। संन्यास के लिए यहां कोई घर घर नहीं है; सभी सराय हैं। जहां ठहरे, वहीं सराय है। इसका यह मतलब नहीं है कि सराय को गंदा करो। कि सराय है, अपने को क्या लेना-देना! इसका यह भी मतलब नहीं कि सराय कैसी भी हो, तो चलेगा। सराय को सुंदर करो। सुंदरता से रहो। लेकिन ध्यान रखो कि जो आज है, वह कल चला जाएगा। यह जीवन का स्वभाव है।
तो बुद्ध ने कहा ः भिक्षुओ! जुही के इन खिले फूलों को देखते हो? ये सांझ मुझ जाएंगे। ऐसा ही क्षणभंगुर जीवन है। अभी है, अभी नहीं। इन फूलों को ध्यान में रखना भिक्षुओ! यह स्मृति ही क्षणभंगुर के पार ले जाने वाली नौका है।
क्यों? जो क्षणभंगुर को पकड़ना चाहता है, उसके भीतर विचारों का तूफान उठेगा। विचार हैं क्या? क्षणभंगुर को पकड़ने की चेष्टाएं। क्षणभंगुर को थिर करने की चेष्टाएं। विचार हैं क्या? घर बनाने की ईंटें। इसलिए जो क्षणभंगुर को पकड़ना नहीं चाहता, उसके भीतर विचार अपने आप क्षीण हो जाते हैं।
सार ही क्या है? जब सब चला जाना है, तो इतने सोच-विचार से क्या होगा? इतनी योजनाएं बनाने का क्या अर्थ है ? अतीत चला गया; भविष्य भी आएगा और चला जाएगा; और वर्तमान बहा जा रहा है। जी लो-बजाय योजनाएं करने के। . जैसे-जैसे विचारं कम होते हैं, वैसे-वैसे ध्यान प्रगट होता है। ध्यान है निर्विचार चित्त की दशा। वही नौका है। वही पार ले जाएगी।
विचारों ने बांध रखा है जंजीरों की तरह इस तट से। ध्यान ले जाएगा नौका की तरह उस तट पर।
भिक्षुओं ने फूलों को देखा और संकल्प कियाः संध्या तुम्हारे कुम्हलाकर गिरने के पूर्व ही हम ध्यान को उपलब्ध होंगे, हम रागादि से मुक्त होंगे। फूलो! तुम हमारे साक्षी रहो।
भगवान ने कहाः साधु! साधु!
जब भी वे आशीष देते थे, तो यही उनका आशीष था ः साधु! साधु! धन्य हो कि साधुता का जन्म हो रहा है। धन्य हो कि सरलता पैदा हो रही है। धन्य हो कि
87