SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विराट की अभीप्सा दूर से सिर्फ यहां बुहारी लगाने आयी हूं। चेहरे उतारने पड़ते हैं। उतारकर रख देने पड़ते हैं। ___ पश्चिम से युवक-युवतियां संन्यास लेते हैं आकर। वे कहते हैं : अजीब बात है। हिंदुस्तान में जो मिलता है, पहले यही पूछता है, डिग्री क्या! कहां तक पढ़े हो! ये बे-पढ़े-लिखों के सवाल हैं। पढ़ा-लिखा आदमी नहीं पूछता यह बात। पढ़ा-लिखा इसको क्या पूछेगा! ये बे-पढ़े-लिखों के सवाल हैं। ___ हिंदुस्तान तो बड़ा अजीब है। कहते हैं बड़ा आध्यात्मिक है, दिखता नहीं। लोग मिले नहीं...। ट्रेन में मिल जाएं, पूछते हैं : क्या काम करते हैं? क्या तनख्वाह? ऊपर से क्या मिलता है? एक तो तनख्वाह पूछना ही अपमानजनक है। किसी आदमी की तनख्वाह नहीं पूछनी चाहिए। क्योंकि हो सकता है, बेचारे की छोटी तनख्वाह हो। और कहने में संकोच हो; और झूठ बोलना पड़े। उसकी नौकरी छोटी-मोटी हो। वह क्लर्क हो, कि किसी प्राइमरी स्कूल में मास्टर हो। अब तुम उसकी भद्द करवाने पर राजी हो। ____ या तो वह सच बोले, तो अपमानजनक मालूम पड़ता है। या झूठ बोले। तुम उसे झूठ बोलने की उत्तेजना दे रहे हो। फिर तनख्वाह क्या मिलती है! और इतने तक चैन नहीं है आध्यात्मिक लोगों को। आखिरी में पूछते हैं, ऊपर भी कुछ मिलता है कि नहीं? अगर ऊपर मिलता है, तो नौकरी अच्छी। हद्द हो गयी! ऊपर मिलने का मतलब क्या होता है? चोरी, बेईमानी, रिश्वत। ये सब थोथे चेहरे हैं। और इन थोथे चेहरों पर हमें बड़ा भरोसा है। इसलिए तुम्हारी जिंदगी में सुवास नहीं है। कागज के फूलों में गंध नहीं होती। तुम्हारा असली फूल तो मरा जा रहा है। तुम्हारा गुलाब का फूल तो सड़ा जा रहा है। कागज के फूलों ने चारों तरफ से उस पर घेरा डाल दिया है। उसको सांस लेने की सुविधा नहीं है। तुम्हारे गुलाब के फूल को अवसर नहीं है कि वह सांस ले ले; कि वह रोशनी में उठ जाए; कि पखुड़ियां खोल दे; जगह नहीं है; अवकाश नहीं है। सब स्थान कागज के फूलों ने भर दिया है। बुद्ध में गंध होती है, क्योंकि बुद्ध के सब कागज के फूल गिरा दिए गए, जला दिए गए। बुद्ध का अर्थ होता है, जिसने अपने असली चेहरे को पा लिया। अब जो फिर वैसा हो गया, जैसा निर्दोष बच्चा होता है। पहले दिन का बच्चा होता है। सिर्फ है। न कोई परिभाषा, न कोई सीमा। असीम हो गया फिर। इस सरलता में सुगंध है, सुवास है। सरलता के अतिरिक्त और कहीं सुवास नहीं। इस सहजता में सुगंध है। इसलिए बुद्ध की कुटी का नाम था गंधकुटी। वहां फूल खिला था—मनुष्यता का फूल। याद रखना ः तुम भी फूल हो; चाहे अभी कली में दबे हो, या हो सकता है, अभी कली भी पैदा न हुई हो; अभी किसी वृक्ष की शाखा में दबे हो। या हो सकता है, अभी वृक्ष भी पैदा न हुआ हो और किसी बीज में पड़े हो। मगर तुम भी
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy